tag:blogger.com,1999:blog-9011555505025252252.post8532286207639367024..comments2023-09-02T06:25:51.630-07:00Comments on भाषासेतु: सूरज की कविता : मेरे खरीददारKunal Singhhttp://www.blogger.com/profile/15345927227661651933noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-9011555505025252252.post-64837765086033971522010-12-04T08:30:17.031-08:002010-12-04T08:30:17.031-08:00Is jade me aisi kavita ka ana ek garmahat paida kr...Is jade me aisi kavita ka ana ek garmahat paida kr rha hai.Pura khayal is bat ka ki khan kitna sinjhana hai,kitni anch chahie.gajab ki kavita .shukriya kunal bhai.Suraj ji ko behtarin rachna hetu badhai!Brajesh Kumar Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/07861200818432210470noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9011555505025252252.post-43329228100384490192010-12-04T08:28:40.455-08:002010-12-04T08:28:40.455-08:00तुमने मेरी कीमत नींद लगाई थी
जो स्वप्न हमने देखे व...तुमने मेरी कीमत नींद लगाई थी<br />जो स्वप्न हमने देखे वो सूद थे<br />जब स्वप्न चूरे में बिखर गया<br />तुमने मुझे समुद्र के हाथों बेच दिया<br />!!!!!!!सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9011555505025252252.post-4726009549868062562010-12-03T04:54:44.729-08:002010-12-03T04:54:44.729-08:00अद्धभुत, बेहतरीन... इस कविता को पढ़ने के बाद प्रति...अद्धभुत, बेहतरीन... इस कविता को पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया में अद्धभुत,बेहतरीन,लाज़वाब जैसे विशेषण ही निकलते है... और मन इसी में गोता लगा के डूब जाना चाहता है... लेकिन कविता जितना अपने भाव में बहाती है उससे कही ज्यादा विचारो,संघर्षो से टकराती है... विचारो की टकराहट,पहचान की संकट को भावना के उबाल के साथ इतनी सहजता से कैरी कर ले जाना विरले ही देखने को मिलता है... इस कविता की यह सहज यात्रा जहाँ विमर्शों के बाज़ार में एक अलग रास्ता खींचती है वही हमारी संघर्ष को एक नई जमीन देती है... शिल्प के स्तर पर यह कविता गेय लोक कथा की धरातल का सफ़र कराती है... “बढ़ई-बढ़ई खूँटा चिरो... खूँटवा में दाल बा... का खाऊँ का पीऊँ का ले के परदेस जाऊँ...” कविता पड़ते हुए इसकी लय साफ सुनाई पड़ती है... सूरज को बहुत बहुत बधाई...shesnath pandeyhttps://www.blogger.com/profile/02346761750600988046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9011555505025252252.post-40389449082713141082010-12-03T01:12:10.455-08:002010-12-03T01:12:10.455-08:00सुंदर...!सुंदर...!उत्तमराव क्षीरसागरhttps://www.blogger.com/profile/16910353784499813312noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9011555505025252252.post-4212841767714006992010-12-03T00:54:42.960-08:002010-12-03T00:54:42.960-08:00मिका कविता से ज्यादा खूबसूरत है .......कविता टुकडो...मिका कविता से ज्यादा खूबसूरत है .......कविता टुकडो में बेहतरीन लगी .....जैसे ये पंक्तिया<br /><br />आज शाम जब आग मुझे<br />तन्दूर में सजा रही थी<br />मैं तुम्हे याद कर रहा था<br /><br />उपलों के बीच तुम्हारी याद सीझती रही<br />सीझती रही<br />सीझती रही...डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9011555505025252252.post-29739155014499587332010-12-02T23:13:42.163-08:002010-12-02T23:13:42.163-08:00उफ्फ्फ बेजोड़ कविता... कई बिम्ब बेहतरीन बन पड़े है...उफ्फ्फ बेजोड़ कविता... कई बिम्ब बेहतरीन बन पड़े हैं... पूरी कविता ही एक मादक खुशबू में लिपटी हुई है. .... बेजोड़ जगह, बेजोड़ दृष्टि और बेजोड़ शिल्प के साथ पेश किया... शुक्रियासागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.com