Saturday, March 06, 2010

दो दुस्समाचार

पिछले कुछ दिनों से कुछ बुरी खबरें सुन ने को मिल रही हैं। पहली तो श्रीकांत दुबे के एक्सीडेंट कि खबर दुखद थी। श्रीकांत हिंदी के नए उभरते हुए कथाकारों में से हैं। आपकी पहली ही कहानी 'तद्भव' जैसी सुप्रतिष्ठित पत्रिका में छपी थी। पिछले दिनों हमारे पाठकों ने मार्कस कि जो कहानी पढ़ी उसका स्पैनिश से सीधा अनुवाद श्रीकांत ने ही किया था। हमारी यही कामना है कि श्रीकांत जल्दी ही स्वास्थय लाभ करें।
दूसरी खबर और भी ज्यादा दुखी कर जाने वाली ये थी कि हिंदी के युवा कथाकार और साथी ब्लोगर चन्दन पाण्डेय के लैपटॉप को कुछ असामाजिक तत्वों ने छीन लिया। चन्दन से मेरी बात हुई तो पता चला कि कोई दस-बारह अप्रकाशित कहानियां और कुछ नोट्स उस लैपटॉप में थे। किसी भी रचनाकार के लिए उसकी कहानियों का खो जाना कितना भयावह होता है, ये खुद एक रचनाकार होने के नाते मैं समझ सकता हूँ। जब बात हो रही थी तो चन्दन जालंधर में था, और शुक्र है कि उस वक़्त मेरे एक मित्र देशराज काली के साथ था। काली का यह कहना कि आप निश्चिंत रहें, चन्दन का मैं ख्याल रखूँगा, ने मुझे थोडा आश्वस्त किया। लेकिन मेरी ये आश्वस्ति क्या चन्दन के थोडा भी काम आ सकती है? झपटमारों को क्या मालूम उनहोंने कितना जघन्य काम किया है!

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