Monday, June 06, 2011

हिंदी कविता







दोस्तो, भाषासेतु और हिंदी साहित्य की दुनिया में पहली बार दाखिल होने वाले ये हैं नफीस खान। ३० नवम्बर १९८६ को बेतिया, बिहार में जन्मे नफीस जेएनयू में चाइनीज भाषा के स्नातक हैं और हिंदी साहित्य से इनका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था। निहायत ही पहली बार इन्होंने यह कविता लिखी है, जिसमें जेएनयू का लोकेल एक किरदार के रूप में मौजूद है। देखते हैं हिंदी के पाठक नफीस और इनकी इस पहली कविता को कैसे लेते हैं।



नफीस खान


ये अमलतास के पीले फूल



ये अमलतास के पीले फूल

न जाने कब से

महक रहे हैं

बिना खुशबुओं के

इन पत्थरों की वादियों में

अपने होने को उकेरते हुए

हर साल कुछ पीलापन

छोड़ जाते हैं इन लाल पत्थरों के सीनों पर

बीतते हैं ये फूल भी

इतिहास के पन्नों की तरह

एक नए अध्याय की तरफ

एक नए अध्याय के इंतज़ार में

इन पत्थरों की वादियों में
ये अमलतास के पीले फूल

न जाने कब से महक रहे हैं

अपनी खुशबुएँ लुटा के।

Sunday, June 05, 2011

मेक्सिको से एक कविता

औरत
ब्रेसिदा केवास कौब
अंग्रेजी से अनुवाद : कुणाल सिंह

औरत, तुम्हारी छातियाँ, आपस में धक्का मुश्ती करतीं दो सहेलियां हैं, जब तुम नहाती हो
तुम्हारी आभा का इन्द्रधनुष तुम्हारे पहनी चमड़ी में फिलहाल स्थगित हो गयी है
तुम्हें एक दफा देखकर कोई तुम्हारे दुखों को नहीं जान पायेगा
नहीं जान पायेगा कि नहाने के टब के नीचे तुम्हारी गाथा की एक ढेड़ पड़ी है
याद है कल नहाते हुए औचक ही तुम्हारे होठों से एक सीटी निकली थी
तुम्हारी वह सीटी एक धागा है, वहां तक के लिए, जिस खूंटी से तुमने अपनी तमाम थकानों को टांग दिया है
और हवा
जैसे कोई नटखट बच्चा हो जो तुम्हें लौंड्री में खींचे लिए जा रहा है
पच्छिम के पेड़ों पर
सूरज एक नवजात बच्चा है जो अपने गर्म आंसू छितराए जा रहा है
लगातार