मनोज पटेल के सौजन्य से निजार कब्बानी की ये कवितायेँ। हम हिंदीपाठियों के लिए एक खुशखबरी बतौर मनोज ने कब्बानी की किताब 'On Entering The Sea' का अनुवाद पूरा कर लिया है, जो शीघ्र प्रकाश्य है।
साथ ही साथ पाठकों के लिए एक सूचना भी : अब से ‘भाषासेतु’ पर कोई भी पोस्ट सप्ताह में एक बार ‘बुधवार’ के दिन लगाई जाएगी। इस सिलसिले की पहली कड़ी (श्रीकांत द्वारा अनूदित) गार्सिया लोर्का की कविताएँ होंगी।
दुनिया की उत्पत्ति का एक नया सिद्धांत
एकदम शुरूआत में...... फातिमा थी सिर्फ
उसके बाद बने तत्व सभी
आग और मिट्टी
पानी और हवा
और फिर आए नाम और भाषाएँ
गरमी और बसंत ऋतु
सुबह और शाम
फातिमा की आँखों के बाद ही
खोजी गई दुनिया सारी,
राज काले गुलाब का
और फिर...... हजारों सदियों के बाद
आईं दूसरी औरतें.
* *
फातिमा
फातिमा खारिज करती है उन सभी किताबों को संदिग्ध है जिनकी सच्चाई
और शुरू करती है पहली पंक्ति से
वह फाड़ डालती है पुरुषों द्वारा लिखी सभी पांडुलिपियों को
और अपने स्त्रीत्व की वर्णमाला से करती है शुरू.
फेंक देती है वह अपने स्कूल की किताबों को
और पढती है मेरे होंठों की किताब में.
छोड़कर धूल भरे शहरों को
पानी के शहरों को चली आती है नंगे पाँव मेरे पीछे-पीछे.
प्राचीन रेलगाड़ियों से बाहर कूद
बोलती है मेरे साथ समुन्दर की जुबां
तोड़कर अपनी रेतघड़ी
ले चली जाती है मुझे समय से परे.
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Thursday, December 16, 2010
Wednesday, November 24, 2010
निकानोर पार्रा की कवितायेँ

निकानोर पार्रा के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस हाइपर लिंक पर क्लिक करें।
ताकीद
अगर यह चुप्पी को पुरस्कृत करने का मामला है
जैसा कि यहाँ मुझे लग रहा है
तो किसी और ने नहीं बनाया है खुद को इतना काबिल
सबसे कम फलदायी रहा हूँ मैं
सालों साल छपाया नहीं कुछ भी
आदी मानता हूँ खुद को
कोरे कागजों का
उसी जान रुल्फो की तरह
जिसने लिखा नहीं उससे ज्यादा एक भी लफ्ज़
जितना कि था बहुत जरूरी.
* *
शांतिपूर्ण रास्ते पर आस्था नहीं मेरी
हिंसक रास्ते पर आस्था नहीं है मेरी
होना चाहता हूँ किसी चीज पर आस्थावान
लेकिन नहीं होता
आस्थावान होने का मतलब है आस्था ईश्वर में
ज्यादा से ज्यादा
झटक सकता हूँ अपने कंधे
माफ़ करें मुझे इतना रूखा होने की खातिर
मुझे तो भरोसा नहीं आकाशगंगा में भी.
* *
पखाने पर मक्खियाँ
इन कृपालु सज्जन से - पर्यटक से - क्रांतिकारी से
करना चाहता हूँ एक सवाल :
क्या देखी है कभी आपने मक्खियों की एक सेना
पखाने के ढेर पर चक्कर लगाती
उतरती फिर काम को जाती पखाने पर ?
क्या देखी हैं आपने पखाने पर मक्खियाँ आज तक कभी ?
क्योंकि मैं पैदा और बड़ा हुआ
पखाने से घिरे घर में मक्खियों के साथ.
* *
ईश्वर से प्रार्थना
परमपिता जो विराजते हैं स्वर्ग में
हैं तरह-तरह की मुश्किलों में
त्योरी से तो लगता है उनकी
कि हैं वो भी एक आम इंसान.
ज्यादा फ़िक्र न करें आप हमारी प्रभु.
हमें पता है कि हैं आप कष्ट में
क्योंकि घर अपना व्यवस्थित नहीं कर पा रहे आप.
पता है हमें कि शैतान नहीं रहने देता आपको चैन से
बरबाद कर देता है आपकी हर रचना को.
वो हंसता है आप पर
मगर रोते हैं हम आपके साथ.
परमपिता आप जहां हैं वहां हैं
गद्दार फरिश्तों से घिरे.
सचमुच
हमारे लिए कष्ट मत उठाइए ज्यादा.
आखिर समझना चाहिए आपको
कि अचूक नहीं होते ईश्वर
और हम माफ़ कर देते हैं सबकुछ.
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