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Tuesday, July 20, 2010

स्पहानी कविता


फेदेरिको गार्सिया लोर्का
अलविदा

बीच चौराहे पर
कहूंगा
अलविदा
चल निकलने के लिए
अपनी आत्मा की रहगुजर।

स्मृतियों और बीत चुके कठिन दौर को
जगाता हुआ
पहुचूंगा
अपने (सफेद से)
उदास गीत के
छोटे से बगीचे में
और कांपने लगूंगा
भोर के तारे जैसा।

भाषासेतु के लिए इस कविता का खासतौर से अनुवाद किया है युवा कवि कथाकार श्रीकांत दुबे नेकविता का अनुवाद कितना कठिन होता है, ये कौन नहीं जानता, तिस पर श्रीकांत मूल स्पहानी से अनुवाद का कार्य करते हैं. तस्वीर लोर्का की है