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Monday, November 08, 2010

हिंदी कविता


विपिन चौधरी
हिंदी की चर्चित युवा कवयित्री। दिल्ली में रहनवारी। मीडियाकर्मी। 'भाषासेतु' पर पहली बार प्रकाशित हो रही हैं।


एक रिश्ता

एक रिश्ता जिसके पायदान पर कदम रखने से ही तस्वीर अपना पुराना अक्स खोने लगी
निश्चित समय के बाद वह रिश्ता डसने लगा बार- बार
हर बार जैसे मैं अजगर के मुँह से घायल हो कर बाहर निकली

बदलाव से इंकार करते हुये मै बदली
ठीक वैसे ही जैसे
पानी में जमा धूल-मिटटी तलछटी में जमा हो जाती है
मेरा भीतर भी पाक-साफ हो कर
मुझे मरियम की तरह बेधडक हो कर
जीना एक बार तो सीख ही गयी

इंसान बनने की प्रक्रिया में
किसी रिश्ते ने शैतान बनने पर मजबूर किया
तो किसी ने देवत्व की राह दिखाई
सिर्फ आदमी ही रिश्ते बना सकता है
यह धारणा पक्की होने से पहले ही धूमिल हो गयी
जब पेड-पौधों, हवा-पानी से भी बेनाम सा रिश्ता सहजता से बना
इसी क्रम में सबसे नज़दीक का रिश्ते को सबसे दूर जाते हुए भी देखा

एक रिश्ता जो हमने बडे मनोयोग से बनाया
उनमें नमक कुछ ज्यादा था
जब वो रिश्ता टूटा
तो दिल में ही नहीं, आँखों तक में
नमक उतर आया

जिन रिश्तों में खाली जगह थी
झाडियाँ बेशुमार उग आयी
बारिश के मोसम मै खरपतवारें बढती गयी
और हमारे नजदीक आने की संभावना
कम होती गई

एक वक्त था जब मैं रिश्ते जोड सकती थी
आज सिर्फ तोड सकती हूँ
सावधानी वश कुछ पुराने रिश्ते
दीमक और सीलन से बचने के लिये धूप में सुखाने के लिये रख दिए
और कुछ को दुनिया की टेढी नज़र से बचाने के लिये ऐयर टाईट डिब्बे में कस के बंद कर दिये

रिश्तो की इसे उहापोह में
एक अनोखे रिश्ते की डोर मेरे हाथ से छूट कर पंतग की तरह आसमान में जा अटकी
उसी को तलाशती मै आज तक आकाश मै गोते लगा रही हूँ।