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Sunday, June 05, 2011

मेक्सिको से एक कविता

औरत
ब्रेसिदा केवास कौब
अंग्रेजी से अनुवाद : कुणाल सिंह

औरत, तुम्हारी छातियाँ, आपस में धक्का मुश्ती करतीं दो सहेलियां हैं, जब तुम नहाती हो
तुम्हारी आभा का इन्द्रधनुष तुम्हारे पहनी चमड़ी में फिलहाल स्थगित हो गयी है
तुम्हें एक दफा देखकर कोई तुम्हारे दुखों को नहीं जान पायेगा
नहीं जान पायेगा कि नहाने के टब के नीचे तुम्हारी गाथा की एक ढेड़ पड़ी है
याद है कल नहाते हुए औचक ही तुम्हारे होठों से एक सीटी निकली थी
तुम्हारी वह सीटी एक धागा है, वहां तक के लिए, जिस खूंटी से तुमने अपनी तमाम थकानों को टांग दिया है
और हवा
जैसे कोई नटखट बच्चा हो जो तुम्हें लौंड्री में खींचे लिए जा रहा है
पच्छिम के पेड़ों पर
सूरज एक नवजात बच्चा है जो अपने गर्म आंसू छितराए जा रहा है
लगातार