फेदेरिको गार्सिया लोर्का
अलविदा
बीच चौराहे पर
कहूंगा
अलविदा
चल निकलने के लिए
अपनी आत्मा की रहगुजर।
कहूंगा
अलविदा
चल निकलने के लिए
अपनी आत्मा की रहगुजर।
स्मृतियों और बीत चुके कठिन दौर को
जगाता हुआ
पहुचूंगा
अपने (सफेद से)
उदास गीत के
छोटे से बगीचे में
और कांपने लगूंगा
भोर के तारे जैसा।
भाषासेतु के लिए इस कविता का खासतौर से अनुवाद किया है युवा कवि कथाकार श्रीकांत दुबे ने। कविता का अनुवाद कितना कठिन होता है, ये कौन नहीं जानता, तिस पर श्रीकांत मूल स्पहानी से अनुवाद का कार्य करते हैं. तस्वीर लोर्का की है।
जगाता हुआ
पहुचूंगा
अपने (सफेद से)
उदास गीत के
छोटे से बगीचे में
और कांपने लगूंगा
भोर के तारे जैसा।
भाषासेतु के लिए इस कविता का खासतौर से अनुवाद किया है युवा कवि कथाकार श्रीकांत दुबे ने। कविता का अनुवाद कितना कठिन होता है, ये कौन नहीं जानता, तिस पर श्रीकांत मूल स्पहानी से अनुवाद का कार्य करते हैं. तस्वीर लोर्का की है।
5 comments:
acchi kavita ka achha anuvaad.
सुंदर रचना...उससे भी अच्छा अनुवाद..बधाई श्रीकांत जी...
Achhi kavita...badhai...bhasha setu
अद्भुत कविता है
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