सुधांशु हिंदी के उभरते युवा कवियों में से हैं. अब तक उनकी कुछ ही कविताएँ प्रकाशित हुई हैं. फिलहाल वे दिल्ली में रहते हैं और जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के अंतर्गत कंप्यूटर साइंस में स्नातकोत्तर के छात्र हैं. यहाँ उनकी कुछ कविताएँ...
दवा
दुःख के आकाश में
प्यार का चीरा लगा के
उम्मीद ने पूछा -
अब, कैसा लग रहा है?..
बाज़ार
मैं उड़ रहा हूँ
आसमाँ में,
तू निगल रहा है जमीं पे
मेरी परछाई!
अकेलापन
रात
में
रेत
पे
लेट
के
प्यास
ने
सोचा,
दिन
कितना अच्छा होता है...
उम्मीद
शहतीर से टंगी लालटेन
रात भर जलती रहती है
उसी उम्मीद की तरह
जो छोड़ आया था,
तुम्हारी आँखों में
आखिरी बार...
फ़रिश्ता
उसे पता था
वह कभी नहीं आएगा
फिर भी उसने, उसके आने की अफवा फैलाई
ताकि उम्मीद जिन्दा रहे!
पता
मै वहाँ नहीं रहता
जिस घर का पता मेरे पहचान पत्र में लिखा है
मै वहाँ भी नहीं रहता जहां से ये पंक्तियाँ लिखी जा रही है
मै कहाँ रहता हूँ
यह कोई नहीं जानता
खुद मैं भी नहीं।
दोस्ती
औंधे मुँह लेटे आकाश ने
सीधे मुँह लेटे आदमी से कहा -
‘कितने अकेले हो तुम?’
...
एक फुसफुसाहट हुई -
‘तुम भी तो...’
और दोनों हँसने लगे।
Monday, October 25, 2010
Thursday, October 21, 2010
शुभ समाचार
'भाषासेतु' के दोस्तों को बताते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है कि आज के बाद इस ब्लॉग के दो नहीं, तीन सम्पादक होंगे। हमारे तीसरे साथी हैं श्रीकांत दुबे। श्रीकांत मूलतः कवि हैं। उन्होंने इधर कुछ कहानियां भी लिखी हैं, जो 'तद्भव', 'नया ज्ञानोदय' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपी हैं, चर्चित-प्रशंसित हुई हैं। अभी हाल में ही उन्हें भोपाल में कहानी पाठ के लिए भी आमंत्रित किया गया था। श्रीकांत का एक अवदान और है कि वे मूल स्पैनिश से अनुवाद का काम भी कर लेते हैं। आशा है, श्रीकांत के इस ब्लॉग से जुड़ने के बाद 'भाषासेतु' में गतिशीलता आएगी, जिसका अभाव पिछले कुछ समयों से देखने को मिल रहा है।
कुणाल सिंह
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