कला के बहुरूप में माहिर युवा साथी 'कुमार अनुपम'। हमारे समय के महत्त्वपूर्ण और चर्चित कवि। चित्रकला में भी सिद्धहस्त। भाषासेतु पर प्रस्तुत हो रही ये कवितायेँ, उनके काव्य संग्रह 'बारिश मेरा घर है' में संकलित हैं। कुमार अनुपम को हाल ही में 'कविता समय' के युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें बधाई।
प्रेम
पृथ्वी के ध्रुवों पर
हमारी तलाश
एक दूसरे की प्रतीक्षा में है
अपने अपने हिस्से का नेह सँजोए
नदी-सी बेसाख्ता भागती तुम्हारी कामना
आएगी मेरे समुद्री धैर्य़ के पास
एक-न-एक दिन
हमारी उम्मीदें
सृष्टि की तरह फूले-फलेंगी।
अंतरण
तुम्हें छूते हुए
मेरी उँगलियाँ
भय की गरिमा से भींग जाती हैं
कि तुम
एक बच्चे का खिलौना हो
तुम्हारा स्पर्श
जबकि लपेट लेता है मुझे जैसे कुम्हड़े की वर्तिका
लेकिन तुम्हारी आँखों में जो नया आकाश है इतना शालीन
कि मेरे प्रतिबिम्ब की भी आहट
भंग कर सकती है तुम्हारी आत्म-लीनता
कि तुम्हारा वजूद
दूध की गन्ध है
एक माँ के सम्पूर्ण गौरव के साथ
अपनाती हो
तो मेरा प्रेम
बिलकुल तुम्हारी तरह हो जाता है
ममतामय।
दोनों
दोनों में कभी
रार का कारण नहीं बनी
एक ही तरह की कमी
- चुप - रहे दोनों
फूल की भाषा में
शहर नापते हुए
रहे इतनी... दूर... इतनी... दूर
जितनी विछोह की इच्छा
बाहर का तमाम धुआँ-धक्कड़
और तकरार सहेजे नहाए रंगों में
एक दूसरे के कूड़े में बीनते हुए उपयोगी चीज
खुले संसार में एक दूसरे को
समेटते हुए चुम्बनों में
पड़ा रहा उनके बीच
एक आदिम आवेश का पर्दा
यद्य़पि वह उतना ही उपस्थित था
जितना ‘नहीं’ के वर्णयुग्म में ‘है’
कई रंग बदलने के बावजूद
रहे इतना... पास... इतना... पास जितना प्रकृति।
3 comments:
बहुत सुंदर पन्क्तियाँ हैं,
''तुम्हारी आँखों में जो नया आकाश है इतना शालीन
कि मेरे प्रतिबिम्ब की भी आहट
भंग कर सकती है तुम्हारी आत्म-लीनता''
साधुवाद।
कुमार की पांडुलिपि मैंने देखी है, मेरे पास है पर ये संग्रह कब छपा भाई - किस प्रकाशन से - कुछ मार्गदर्शन करो कुणाल। इसे तुरत हासिल करना चाहूंगा।
bahut hi achhii
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