मध्यवर्गीय बुनियादी दिक्कतों का संस्मरण
सुशील सिद्धार्थ
शशिभूषण द्विवेदी की कहानी 'छुट्टी का दिन' एक बेरोजगार व्यक्ति की मध्यवर्गीय बुनियादी दिक्कतों का संस्मरण है। ठीक तरह से लिखी यह कहानी 'नयी कहानी' के बाद उभरे दर्जनों कहानी आन्दोलन में लिखी गयी बहुत सारी कहानियों की याद दिलाती है। शशि से उम्मीद कुछ ज्यादा है। कहानी के अंत में माल कल्चर और फुटकर दुकानदारों की तुलना कर नए आर्थिक रिश्तों की तरफ संकेत किया गया है। मुझे लगता है कि 'स्पेस' के दबाव में कहानी के कुछ डिटेल्स डिलीट कर दिए गए हैं। इन विवरणों के अभाव में भी शशि की यह कहानी अच्छी है, महत्त्वपूर्ण कहने में हिचक रहा हूँ।
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