मंजुलिका पाण्डेय
'भाषासेतु' के हमारे दोस्तों को याद होगा, अभी हाल ही में हमने युवा कवयित्री-कथाकार मंजुलिका पाण्डेय की दो कविताएँ प्रकाशित की थीं। इस बीच 'नया ज्ञानोदय' के युवा पीढ़ी विशेषांक में मंजुलिका की एक कहानी 'उस दिन' प्रकाशित हो चुकी है। एक बार फिर मंजुलिका की दो कविताएँ यहाँ दी जा रही हैं। प्रतिक्रियाएं आमंत्रित हैं।
कही अनसुनी
एक दूसरे के कन्धों पर झुके
हम तुम हैं बिलकुल पास पास
(लगता सचमुच ऐसा ही है देखकर)
एक दूसरे के कानों में बोलते हुए
बिलकुल एक जैसे लगते शब्द
मैं सोचता हूँ...
तुम थाम रहे हो मेरे शब्द
और कर रहे हो अर्थों की बुनाई
तुम्हें लगता है मैं पी रहा हूँ तुम्हारे शब्द
और भर रहा हूँ उसके भावों से
पर...
एक सी आवाज़ एक सी ध्वनि, एक से अक्षरों वाले
शब्दों की भाषा ऐसी
कि मेरे लिए तुम्हारे शब्द
सिर्फ एक आकारहीन चित्र
तुम्हारे लिए मेरे शब्द
सिर्फ एक शोर।
नयी फसल
हवा में टंगे हुए धड
उड़ रहे हैं
फर्लांग रहे हैं सीमायें
जूझ रहे हैं खूब
हवा की गति को पछाड़ने के लिए
धकिया रहे हैं एक दूसरे को
चाँद पे ज़मीन हथियाने के लिए
और धरती पर हो रही है खेती
उखडे हुए टांगों की।
17 comments:
lajawab kavitaen.pahle wala post v dekha fir se.kahani nahi apdhi hai ab tak. bahut badhai apko aur manjulika jee ko
dharmendra kumar
कवितायें उम्दा हैं. बधाई.
अच्छा ब्लॉग.
अच्छी कविताएँ कुणाल.
धन्यवाद शिरीष भाई, ब्लोग की तारीफ करने के लिये. कविताए वाकई अच्छी हैं लेकिन मेरी थोडे हैं जो अपने मेरा नाम लिख दिया. just kidding!
कुणाल सिंह
Nice poems. Wishes.
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photo aur badhiya hai
dear mr. anonymous,apka comment dekha, kabhi aap v apna foto bhejen, jaroor lagaenge, jara dekhen to, aap jaison ki shaql bhi kaisi lagti hai!
jaroor bhejiyega.
kunal singh
बिल्कुल सही लिखा आपने कुणाल ! चेहरा चुराके ये कौन है जो खुद को कहने से रोक नही पा रहा है ? अरे जब तारीफ करनी ही है तो खुलकर करो न !
han sushila ji, isiliye maine kaha ki jara dekhun aap jaison ki shaql 'bhi' kaisi lagti hai, kyonki aise logon kii neeyat to saf hi hai, shaql se bhii insaan hi lagte honge.haha. to sun rahe hain mr. anonymous, aaie janta apse apka chehra maang rahi hai. jhalak dikhla ja...
achchi hain kavitaen ...khaskar doosri.
दोनों ही कविताएं अच्छी हैं, बधाई स्वीकार करें। मंजूलिका जी की तारीफ विमल चंद्र पांडे जी पहले भी कर चुके हैं। पढने का अवसर आपने और ज्ञानोदय ने दिया। अभिनंदन और ब्लॉग बहुत ही आकर्षक है।
दुर्गेश सिंह.
मंजुलिका कि कविता हो या कहानी.... अनुभव की सघनता एक विन्यास के साथ देखने को मिलती है....अच्छी कविता है.... बधाई....
आजकल अनोनिमासों की भीड़ लगी हुई है. मनोरंजन के कई नवीनतम साधनों ने खासा नया मनोरंजन है यह...अभी चन्दन के ब्लॉग पे एक अनोनिमस ने बहुतों का कई दिनों तक अपने अथक प्रयास से नाच गाकर मनोरंजन किया था और अब ये दूसरा यहाँ कुनाल बाबू के ब्लॉग पर . पर चन्दन के ब्लॉग वाला अनोनिमस ज्यादा पढ़ा लिखा और समझदार था यानि ऐसा इंसान था जिससे बहस की जा सकती थी छुपी आइडेंटिटी के साथ भी लेकिन इस अनोनिमस में ये बात नहीं है . इस बेचारे ने एक ऐसी बात कही है जिसके लिए इसको नाम छुपाने की कतई ज़रूरत नहीं थी. मंजुलिका जी वाकई में खूबसूरत हैं , ये बात उनकी तस्वीरों से साफ़ ज़ाहिर है और जितनी ख़ूबसूरत वो हैं उससे कहीं ज्यादा ख़ूबसूरत है उनकी भाषा, उनका पद्य हो या गद्य , उनकी भाषा की संवेदनशीलता और प्रवाह पाठक को एक दूसरी ही दुनिया में ले जाता है. अरे अनोनिमस पगले पूरी बात कह देता तो नाम तो न छुपाना पड़ता.
कुनाल की तारीफ इसलिए की जानी चाहिए की भले अभय देवल की फिल्मों की उत्कृष्टता का श्री निर्देशक को जायेगा, उनके चयन की श्रेय तो अभय देओल को ही मिलेगा.
मंजुलिका को फिर से दो बेहद सुंदर कविताओं के लिए और कुनाल को उन्हें छापने के लिए बधाई
विमल चंद्र पाण्डेय
मंजुलिका की कविता बढ़िया है। विनीत भाई वाली पोस्ट आज देख पाया। हास्टल लाइफ पर लिखवाने का यह आइडिया शानदार है। उम्मीद है यह शृंखला लम्बी चलेगी।
सही कहा विमल जी ...भाई अपने कुनाल जी तो हिंदी साहित्य के रामगोपाल वर्मा हैं ...नयी -नयी "प्रतिभाएं " खोज ही लाते हैं ....जिससे हमारा हिंदी साहित्य समृद्ध हो रहा है ... भाईयों मेरा कोई ब्लॉग नहीं है ..इसलिए तथाकथित एनोनिमस टिपण्णी ही कर रहा हू ...अशोक सिन्हा
प्रशंसनीय ।
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