Wednesday, January 12, 2011

हिंदी कविता

जैसा कि 'भाषासेतु' के पाठकों से हमारा वायदा था कि अब से हम हर हफ्ते बुधवार के दिन एक नए पोस्ट के साथ हाजिर होंगे, तो इस बार आपके समक्ष हैं हिंदी के जाने माने कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव की चन्द कविताएँ। 'इन दिनों हालचाल', 'अनभै कथा', 'असुंदर सुन्दर' नामक तीन संग्रहों के 'मालिक' जितेन्द्र पेशे से प्राध्यापक हैं। कविता के अलावा आलोचना पर भी समान अधिकार। भारत भूषण अग्रवाल सम्मान, कृति सम्मान, भारतीय भाषा परिषद के युवा पुरस्कार समेत कई महत्त्वपूर्ण पुरस्कारों से नवाजे गए जितेन्द्र की प्रेम कविताओं का एक संग्रह 'बिलकुल तुम्हारी तरह' जल्दी ही प्रकाशित होने वाला है। पेश है इसी संग्रह से कुछ प्रेम कविताएँ।

जितेन्द्र श्रीवास्तव
पहचानना हथेली की तरह

तुम्हें पहचानता हूँ
अपनी हथेली की तरह

तुम्हारे माथे पर
उभर आईं रेखाएँ
मेरे हाथ की लकीरों की तरह हैं।

तुम्हारे नाम


भीगी सी शाम
तुम्हारे नाम

पात पात पर पानी फिसले
आँखों में कुछ आये मचले
इधर उधर की बातें प्यारी
सुबह सांझ में कैसी यारी

वह देखो बेवक्त
निकला है घाम।

पहाड़

ये पहाड़ हैं प्रिये
देश की देह पर ढाल से

यहाँ गाती हैं युवतियां मौसम के गीत
करते हुए काम
गाती हैं मेरे गाँव के पहाड़ कितने सुन्दर हैं
इन दिनों दृश्य कितना मनोरम है
ऐसे में फौजी पिया घर आ जा
दिल के करार आ जा
जीवन के बहार आ जा।

इन दिनों हालचाल
काँप रहा है दिन
और धुप भी पियराई है
न जाने
कौन ऋतु आई है!

उजास
तुम्हें फूल होना था
तुम पत्ती हुई

मुझे रंग होना था
मैं पानी हुआ

पानी-पानी जवानी-जिंदगानी हुई!

8 comments:

Anonymous said...

JITENDRA JI, AAPKI KAVITAEIN BAHUT ACHCHI HAI.

सुभाष नीरव said...

बहुत ही प्यारी और दिल को छू लेने वाली कविताएं ! अन्तिम कविता 'उजास' तो बहुत ही अच्छी लगी।

daanish said...

जीतेन्द्र जी की
सभी कविताएँ
मननीय हैं....... !!

Aparna Mishra said...

A gud try is all I can say......

Aparna Mishra said...

A gud try is all I can say

RAJESHWAR VASHISTHA said...

इतनी अच्छी कविताएं पढ़ कर कौन प्रसन्न नहीं होगा । सभी कविताएं अद्भुत हैं ।

बोधिसत्व said...

achhi kavitayen....

निर्मल गुप्त said...

धूप को धूप ही रहने दें .धुप से काम नहीं चलने वाला .