जैसा कि 'भाषासेतु' के पाठकों से हमारा वायदा था कि अब से हम हर हफ्ते बुधवार के दिन एक नए पोस्ट के साथ हाजिर होंगे, तो इस बार आपके समक्ष हैं हिंदी के जाने माने कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव की चन्द कविताएँ। 'इन दिनों हालचाल', 'अनभै कथा', 'असुंदर सुन्दर' नामक तीन संग्रहों के 'मालिक' जितेन्द्र पेशे से प्राध्यापक हैं। कविता के अलावा आलोचना पर भी समान अधिकार। भारत भूषण अग्रवाल सम्मान, कृति सम्मान, भारतीय भाषा परिषद के युवा पुरस्कार समेत कई महत्त्वपूर्ण पुरस्कारों से नवाजे गए जितेन्द्र की प्रेम कविताओं का एक संग्रह 'बिलकुल तुम्हारी तरह' जल्दी ही प्रकाशित होने वाला है। पेश है इसी संग्रह से कुछ प्रेम कविताएँ।
जितेन्द्र श्रीवास्तव
पहचानना हथेली की तरह
तुम्हें पहचानता हूँ
अपनी हथेली की तरह
तुम्हारे माथे पर
उभर आईं रेखाएँ
मेरे हाथ की लकीरों की तरह हैं।
तुम्हारे नाम
भीगी सी शाम
तुम्हारे नाम
पात पात पर पानी फिसले
आँखों में कुछ आये मचले
इधर उधर की बातें प्यारी
सुबह सांझ में कैसी यारी
वह देखो बेवक्त
निकला है घाम।
पहाड़
ये पहाड़ हैं प्रिये
देश की देह पर ढाल से
यहाँ गाती हैं युवतियां मौसम के गीत
करते हुए काम
गाती हैं मेरे गाँव के पहाड़ कितने सुन्दर हैं
इन दिनों दृश्य कितना मनोरम है
ऐसे में फौजी पिया घर आ जा
दिल के करार आ जा
जीवन के बहार आ जा।
इन दिनों हालचाल
काँप रहा है दिन
और धुप भी पियराई है
न जाने
कौन ऋतु आई है!
उजास
तुम्हें फूल होना था
तुम पत्ती हुई
मुझे रंग होना था
मैं पानी हुआ
पानी-पानी जवानी-जिंदगानी हुई!
8 comments:
JITENDRA JI, AAPKI KAVITAEIN BAHUT ACHCHI HAI.
बहुत ही प्यारी और दिल को छू लेने वाली कविताएं ! अन्तिम कविता 'उजास' तो बहुत ही अच्छी लगी।
जीतेन्द्र जी की
सभी कविताएँ
मननीय हैं....... !!
A gud try is all I can say......
A gud try is all I can say
इतनी अच्छी कविताएं पढ़ कर कौन प्रसन्न नहीं होगा । सभी कविताएं अद्भुत हैं ।
achhi kavitayen....
धूप को धूप ही रहने दें .धुप से काम नहीं चलने वाला .
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