Wednesday, January 19, 2011

हिंदी कहानी

खदेरूगंज का रूमांटिक ड्रामा
दुर्गेश सिंह

युवा कहानीका दुर्गे सिं की इस पहली कहानी को 'भाषासेतु' पर प्रकाशित करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। दुर्गेश फिलहा मुंबई में 'नवभारत टाईम्स' से जुड़े हुए हैं। अभी हाल ही में दुर्गेश ने अपनी दूसरी कहानी 'जहाज़' कापा 'मुखातिब' (मुम्बई) में कर श्रोताओं का मन मोह लिया है।

रावण जल चुका था, फिर भी लोगों के मन में हाहाकार मचा हुआ था। मेला अपने चर पर था। बच्चे घुनघुने सेलेकर हवाई जहाज तक का सौदा कर लेना चाह रहे थे और महिलाएं अंदाज में अंर्तवस्त्रों के ठेले पर पिली पड़ीथी मानों उम्र भर की जवानी आज ही मुट्ठी में कैद कर लेना चाहती हो। छोटे हलवाई काली जर्द पपड़ी वाली कराहीमें लपर-लपर गुड़ की जलेबियां छान रहा था। रह-रहकर वह बाएं हाथ से पसीना पोंछ लेता था, इस प्रक्रिया में लकबाय चांस एकाध बूंद दाईं तरफ चू जाती तो कराही छन्न से कर उठती। दस साल का रमई गला फाड़-फाड़ बचपनेकी चीनी में भविष्य को भी जलेबी बनाकर बेच रहा था। बसंतू बाबू जितनी मूंगफली बेच नहीं चुके थे, उससे अधिककउर चुके थे। पप्पू पनसारी की दुकान पर ग्राम परधान सिरपत धोबी बैठे नरेगा-वरेगा जैसे सरकारी मदों सेमिलने वाले पैसों की गैर-सरकारी तरीके से जुगत भिड़ा रहे थे। बरछी और कलऊ नामक दोनों बॉडीगार्ड सिरपत केपैरों में मुंडवत गिरे ऐसे लग रहे थे मानों दो घोंघे जमीन पर आमने-सामने हो। तभी रामलीला में राम का किरदारनिभाने वाले लोकल आर्टिस्ट अशोक गुप्ता कुछ चीथड़े लपेटे हुए भीड़ को चीरते हुए निकले। पीछे की ओर भागतेहुए कुछ बच्चे हनुमान की पूंछ की तरह लगे। देखते ही सिरपत के मुंह से पान की पीक निकलकर बरछी के थोबड़ेपर चिपड़ गई जिसे उसने मुखामृत समझकर मस्तक से लगा लिया। अशोक गुप्ता के पीछे लम्बे बालों वाले लेखकबुल्ला खां, गांधी छाप झोला कंधे पर और लम्बा रजिस्टर उंगलियों में फंसाए निकले।
सिरपत ने पूछा- का भ बुल्ला जी।
बुल्ला- अरे, प्रधान अब हम का करें, सीन समझा रहे थे तब तक अशोक गुप्ता भाग निकलें।
सिरपत- (वार्निंग देते हुए) आज मेला का आखिरी दिन है, रामलीला खत्म हो रहा है, कुछ दिन बाद होने वालेनाटक में बहुत भीड़ होनी है तनिक भी गड़बड़ी भई तो आपको घर की उड़द जांगर में डालनी पड़ेगी।
एक बात अउर हम सोच रहे हैं कि इस बार नाटक में थोड़ा रूमांस हो, त मजा आ जाए। (पीक फिर से थूकते हुए)।
बुल्ला– ‘ कफन करिया का’ में।
सिरपत- हां।
बुल्ला– गरीब करिया की बीवी मर जाती है, उसके पास इतने पैसे नहीं है कि वह अपनी पत्नी के लिए कफन खरीदसके। वह गांव के हर घर जाकर भीख मांगता है कि उसे कफन खरीदने के लिए पैसे चाहिए। इसमें रूमांस कहां सेआएगा।
सिरपत- ई कहानी तो पहले भी हम सुन चुके हैं। (गंभीर तरीके से सोचते हुए)- अरे भाई इ समय नाम नहीं याद आरहा है लेकिन बड़े ही नामी लेखक थे। रिवालेशन कर दिए थे कहानी लिख-लिखकर। तो इसमें रूमांस डालिए। खैर, सुनो करिया वाला रोल कहीं अशोक गुप्ता को तो नहीं दिए हो।
बुल्ला– अरे, परधान उहै का तो रिहर्सल करा रहे थे कि उ भाग निकले। बोले सूट नहीं कर रहा रोल, नहीं करना।
सिरपत- दिमाग फिर गया है तुम्हरा मास्टर, अयोध्या नरेश श्री राम अगर घर-घर जाकर पैसा मांगेगे तो पब्लिकदू मिनट में तुम्हारा पोस्टमार्टम कर देगी।
बुल्ला- परधान हम बहुत सोच के इ फैसला लिए हैं, इसके अलावा हमरे पास कोई आयडिया नहीं है जो अपनीजिंदगी बदल सकता है।
सिरपत- उ कैसे।
बुल्ला- पब्लिक अशोक गुप्ता को लेकर पगलाई रहती है बारहों महीने। बुढ़ए उनको रामचंद का अवतार मानकरराह चलते जय श्री राम कहते हैं। उनकी दुकान में भी जय श्री राम, राधे-सीता, हरे किशना लिखे गमछों और चुनरीका पॉवरफुल बिक्री होता रहता है बारहों महीने। यही नहीं उनका हगना-मूतना तक मुश्किल करे रहते हैं नई उमरके लवंडे। कहते हैं कि हे श्री राम बस एक ठो सीता दिलवा दीजिए। आप तो एक्सपर्ट हैं, हर सलिए धनुष तोड़ते हैंऔर लहा ले जाते हैं कमर में हाथ डालकर। खिसुआ त आंदोलने कर दिया है और कहा है कि इस बार नाटक मेंकाम नहीं मिला तो धनुष टूटने पर रस्सी बम ना फाटी। अशोक गुप्ता को गरियाता भी है वह।
सिरपत- (पीक उगलते हुए) खिसुआ गरियाता है। (जोरदार ठहाका लगाते हैं)। का कहता है उ।
सिरपत के पीक उगलने और हंसने की प्रक्रिया को बरछी और कलऊ ऐसे मंत्रमुग्ध होकर देखते हैं जैसे कि ये दोनोंही अपने आप में विशिष्ट हों।
बुल्ला मास्टर- (शिकायत की मुद्रा में) नई उमर का लवंडा हऊ प्रधान उ। दू साल से जब-जब अशोक गुप्ता धनुषमंच पर तोड़ते हैं तब-तब प्राइमरी स्कूल में सुतली बम उहै फोड़त है। अब आपको तो पता है कि पूरे गांव मा देसीबम बनाने की प्रक्रिया ओकरै खानदान को पता है। फ्रस्टिया गया है, एक दुपहरिया घर आकर कहै लगा कि सुनाबुल्ला चचा, इ बार अगर रोल नहीं मिला तो कउनो धमाका ना होई। अशोक गुप्ता धनुष त जरूर तोडि़हैं लेकिनआवाज ना आई।
इतना कहने के साथ ही मास्टर बुल्ला सेंटीमेंटल हो गए और बोले- प्रधान, इहै नहीं, उ बोला कि और इ आवाजऊपर वाले की लाठी वाली आवाज टाइप होई जवन लगे तो जरूर पर कुछ ना सुनाई देई।
सिरपत प्रधान अपने जीवन काल में बड़े ही कम अशुभ मौको पर गंभीर हुए थे, खिसु प्रसंग ने उन्हें आज फिर सेगंभीर कर दिया था। दिमाग में खुराफात सूझी तो बोले- ड्रामा रोमांटिक होगा मास्टर, खिसुआ को अगर हीरो बना देतो कैसा रहेगा। हेरोईन कहीं मेले में हेरा जाएगी और उ ढूंढता रहेगा। (सीना गच्च से फूलकर पेट के लेवल में आगया) अंत मे मिल जाएंगे दोनों।
उनको यह लगा कि बुल्ला कहीं मना न कर दें, ऐसा लिखने से तो उन्होंने कहा- वैसे मास्टर एक ठो बात पूछें बुरातो नहीं मानोगे ना।
बुल्ला मास्टर- (बुरा मानने वाले मन के प्रभावी होने की दशा में मुख पर उदासीनता का मुखौटा लगाकर)
जी परधान, बोलिए।
सिरपत- (सिर खुजाते हुए ) कहानी कुछ ऐसी करिए कि खिसुआ हेरोईन को ढूंढते हुए करिया के घर पहुंच जाएगाऔर एक दिन नहर किनारे वाले खेत के मेड़ पा घास छीलती हुई हेरोईन उसको मिल जाएगी। (चेहरे पर चमक आगई थी) अंत में यही दोनों करिया के बुढापे का सहारा बन जाएंगे।
बुल्ला मास्टर (लगभग पगलाने की अवस्था में)- अरे, का कह रहे हो परधान। पिछले एक साल में स्याही सूखनेनहीं दिए हैं इसके चक्कर में। बीमार बीवी का भी ध्यान नहीं धरे। अब आप कह रहे हैं कि कहानी में रूमांस लानाहोगा।
सिरपत- (हाथ ऊपर उठाते हुए) देखिए, नर्वस मत होइए मास्टर, बहुत कुछ नहीं थोड़ा बहुत होगा। पैसे की जरूरतहमहूं को है और आपको भी। जेतना चंदा एकट्ठा होगा उतना ही फयदा होगा। परचा छप गया है, एक दिन काटाइम है आपके पास सोचके बताइगा। हो सके तो खिसु और उसकी प्रेमिका के बीच एक जर्बदस्त प्रेम प्रसंग कासीन भी लिख लीजिएगा। उस कंडेशन में हमको किसी और की मदद नहीं लेनी होगी।
बुल्ला मास्टर ने अपने झोले का टंगना मजबूती से कंधे के ऊपरी सिरे की ओर सरकाया। थूक की एक सूख चुकीपीक गटकी और एक हाथ उठाकर सिरपत परधान को नमस्ते किया। बहिनचोद नामक विशेषण उन्होंने पिछवाड़ादिखाते हुए सिरपत के लिए छोड़ दिया। बरछी और कलऊ को पता होता कि सिरपत को उत्तेजित करने वाला कोईखजाना हवा में तिर रहा है तो वे तुरंत पप्पू पनसारी की दुकान पर इक्कीसवीं सदी का काकोरी कांड कर डालते।
मेले की भीड़ से पैदल ही अपनी साइकिल लेकर मास्टर बुल्ला निकले और बाजार खत्म होते तक निरंतर चलते हीरहे। मास्टर बुल्ला की यही एक प्रॉब्लम थी कि वे डिप्रेशन में नहर किनारे वाली देसी की दुकान पर अपनी सवारीरोक देते थे। उस दिन बुल्ला को मूड में देखकर पल्लेदार हजारी राम बहुत खुश हो गया। चिकट बेवड़ों को शाम सेपिला-पिलाकर उसके दिमाग की मां-बहन-बीवी सब हो गई थी। बुल्ला को देखते ही उसने दो राजाबाबू के खंभेअपने तकिए के नीचे दबा दिए और शाम सात बजे ही दुकान बंद करने की तैयारी पूरी कर ली।
बुल्ला ने भी अपनी साइकिल टेढ़ी कर ‘आपका ध्यान किधर है, मधुशाला इधर है’ वाले बोर्ड के सहारे खड़ी कर दी।
बुल्ला मास्टर नीम के नीचे एक लावारिस गुमटी से सटे कुएं की जगत पर हताश बैठ गए। दिन भर की गर्मी खत्महो रही थी लेकिन बुल्ला के दिमाग की गर्मी भरभरा कर बाहर निकल रही थी। पल्लेदार हजारी राम ने सफेद कांचके दो मटमैले गिलास बुल्ला के सामने रख दिए। राजाबाबू बुल्ला मास्टर का फेवरेट ब्रांड हुआ करता था। सबसेतेज बिलकुल खबरिया चैनल की तरह उसका नशा बुल्ला के दिल-दिमाग पर छा जाता था और सुध-बुध खोकर वेअपनी वाली पे उतर आते थे।
कुएं की जगत पर झक्क सफेद चांदनी में आमने-सामने बैठे हजारी और बुल्ला दो देवदूत लग रहे थे।
उनके बीच में दो गिलास, एक बोतल, पेपर पर बिखरी दालमोट, नीबूं के कुछ फांके और प्याज के टुकड़े ऐसे लग रहेथे मानो वे दुनिया को सुखी करने का कोई मंतर इन्हीं संसाधनों के आधार पर पढ़ने वाले हो। दूर से देखने वालानिश्चय ही हदस जाता। एक बार बुल्ला गिलास उठाते और तो दूसरी बार हजारी। चियर्स करने की अवस्था मेंपहला दूसरे के मुंह तक गिलास ले जाता और दूसरा पहले के मुंह तक। बीच में दोनों गिलास रखते और दालमोटको फैलाकर धरती की तरह गोल कर लेते। फिर उस पर नींबू गारते और प्याज छिड़कते, मानो धरती की खुशहालीके लिए हवन कर रहे हों।
हजारी- कहानी समझ गए, इ चूतिया सिरपतवा सब बदलने के चक्कर में है। पहले पंचायत भवन मा किराने कादुकान खोलवा दिया, तेल-चीनी अपने घर से बंटवा रहा है और अब रामलीला का भी अंत करने की तैयारी में है।सुरसा लीलैं एका।
बुल्ला-पूरा एक साल लगा दिए हैं, ड्रामा का कहानी लिखने में और उ बकचोद बोलता है कि कहानी में प्रेम प्रसंगडालो। (गिलास धम्म से नीचे रखते हुए) अरे घंट से प्रेम प्रसंग डाले। कउन प्रेम करता है आजकल किसी को। खुदसाला खिसुआ की मां को दिन-दहाड़े पटक लेता है अरहर के खेत में अउर बात करता है प्रेम प्रसंग की। अच्छे, जियावन, सरजू, मदेली, सेवा और सबका एकई साझा किस्सा है।
हजारी को लगा कि अब बुल्ला मूड में आ गए हैं और किसी भी पल उसके फैमिली लाइफ का भी सी टी स्कैन कियाजा सकता है।
हजारी- (बीच में ही टोंकते हुए) तो लिखिए ना भाई सिरपतवा के हिसाब से। पइसा काटता है क्या आपको। पिछलापंद्रह साल से रामलीला लिख रहे हो, क्या मिला। अरे आपको तो इ भी नहीं पता है कि पर्चा छप गया है आपके नामसे। गांव भर में चपकवा और बंटवा रहा है- आजादी के साठ साल बाद खदेरूगंज के इतिहास में पहला थेटर ड्रामा।पहले हम सोचे कि वही पुराना ड्रामा फिर होगा लेकिन इहां तो सीन दूसरा है। आगे क्या लिखा है थामिए जराबताता हूं।
दो पेग के बाद अक्सर हजारी ऐसे ही तांडव पर उतर आते थे। दिन के उजाले और होश-हवास में वह जो काम नकर पाते थे, वह राजाबाबू की खुमारी में कर गुजरते थे।
बुल्ला मास्टर सरेंडर मोड में थे और हजारी ने दालमोट के नीचे दुबकी जा रही ड्रामा के विज्ञापन की पर्ची बाहर खींचली। उस पर लिखी दूसरी लाइन कुछ इस तरह थी कि खदेरूगंज रामलीला के मशहूर लेखक मास्टर बुल्ला कीसरफरोश लेखनी से निकला ‘ कफन करिया का ’। पहला थेटर ड्रामा जिसको देखकर आंसू की नदियां बहनिकलेंगी। रामचंद का अविस्मरणीय किरदार निभाने वाले अशोक गुप्ता पहली बार गरीब करिया के रोल में। साथही नए प्रेमी जोड़े का प्रेम प्रसंग भी। महिलाओं और बच्चों के बैठने के लिए अलग पंडाल की व्यवस्था। टिकट दर- दस रूपए। पहले आइए और पहले पाइए। विशेष निगरानी के लिए लाउडस्पीकर और होम गार्ड्स की अतिरिक्तव्यवस्था। किरपा करके अपने बच्चों और बोरों का ध्यान रखें, खो जाने पर रामलीला नाट्य समिति और पंचायतखदेरूगंज की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।
इतना कहने के साथ ही हजारी ने पर्ची मास्टर बुल्ला के हाथ में थमा दी। बुल्ला जब तक पर्ची निहारते उनकी लारटपककर पर्ची को गिला कर गई। अपने कुर्ते पर रगड़कर बुल्ला ने उसे सुखाना चाहा लेकिन तब तक उस पर्ची केचीथड़े उड़ चुके थे।
हजारी ने दोनों गिलासों को नाइंटी डिग्री एंगल पर जाकर निहारा तो पता चला कि जाम खाली हो चले थे। उन्होंनेबुल्ला मास्टर का गिलास उठाकर उनकी नाक के पास सटा दिया तो बुल्ला ने जवाब दिया- हजारी बाबू, थोड़ा सबरअली का लो।
हजारी को समझ आ गया था कि बारी बुल्ला मास्टर की है।
बुल्ला– (लरजती आवाज में) अब समझ आया कि सिरपत प्रेम-प्रसंग क्यों डलवाना चाहता है नाटक में।
हजारी- (सहजता से) क्यों।
बुल्ला– क्योंकि बुल्ला मास्टर की लेखनी का टेस्ट लेना है उसे। अब हो चली है चला-चली की बेला। बुल्ला मास्टरकी लेखनी में उ धार कहां। (पिछवाड़े का पिछला हिस्सा पीछे की तरफ शिफ्ट करते हुए)
ऐसा सिरपत को लगता होगा।
हजारी भी सीमेंट के बने चबूतरे पर एक हाथ सिर पर टिकाकर उर्ध्व लेट गए और बोले- पर मास्टर तुमको कोईयहां से खदेर नहीं सकता। खदेरूगंज का नाम खराब नहीं होने देना है मास्टर।
बुल्ला मास्टर की आंखें चटक चांदनी में चांद को निहारने लगी। बचपन में पहुंच चुके मास्टर को याद आया कि कैसेउनके गांव के ही ठाकुर गुलजार सिंह और परताप सिंह ने गोरों की एक पलटन को गांव से खदेर दिया था। तब सेगांव का नाम खदेरूगंज पड़ा और वहां के लोग हर साल कुछ न कुछ खदेरने लगे। कभी मलेरिया, कभी प्लेग, कभीसूखा, कभी बाढ़, कभी लकड़बग्घा तो कभी मुंहनोचवा, सब खदेर चुके थे यहां के लोग।
बुल्ला– हजारी, सब कुछ तियाग दिए, लिखने के चक्कर में। तड़पत विमली आज भी नाच उठती है आंखों में। सदरका डागडर कहेस, बरेस्ट कैंसर है। अरे हम सोचा (एक हाथ हवा में घुमाकर) प्लेग, हैजा, पोलियो, टायफायड, कालरा इहै बीमारी होती है। कैंसर का हुआ, हमको थोड़ा रिस्की लगा (एक गाल टेढ़ा करते हुए)। बुल्ला मास्टर नेअपनी जिंदगी में इतने रिहर्सल किए और करवाए थे कि उनकी पर्सनल बातें भी इमोशनल सीन की रिहर्सल जैसीलगती थी।
बुल्ला आगे बोले- फिर जब सरकारी से प्राइवेट में ले जाने को बोले तो हमको लगा अब क्लाइमेक्स का टाइम आगया है बिमला रानी, मोरी बिमला रानी। इतने के साथ बुल्ला मास्टर चिंघाड़ने लगे।
हजारी ने उनका मुंह दबाकर जर्बदस्ती बंद करवाया वरना पवित्र नीम के पेड़ के नीचे दारू पीने के एवज मेंखदेरूगंज की छह सदस्यीय पंचायत फैसला करने बैठ जाती।
तो लिख के दे दीजिए सीन ना, हजारी बोला।
बुल्ला- हमारी खुद की जिंदगी मा एतना ट्रेजडी रहा है और हम आज तक लव सीन नहीं लिखे हैं।
हजारी- त एक बात कान में घुसेड़ ला बुल्ला मास्टर, एई बार ना लिखबा त अगली दाईं से रामलीला के पंडाल माबोरा बिछाई के बैठबा।
राजाबाबू को बुल्ला ने पूरी तरह से अपनी गिलास में उड़ेल लिया।
हजारी- अरे, मास्टर दिमाग फिर गया है आपन, पानी कहां है अपने पास, एक बोतल लाए थे उहौ खत्म हो गया है।
बुल्ला (गिलास नीचे पटकते हुए)- त अब का सुच्चै दारू अंदर जाई।
आधी शराब उन्होंने हजारी के गिलास में डाल दिया।
हजारी (चबूतरे पर से कूदते हुए)- दबे पांव चला मास्टर नहर की ओर, उहीं पानी मिली।
अपना-अपना गिलास हाथ में पकड़े बुल्ला और हजारी नहर की ओर चल पड़े। रात अपने शबाब पर थी, अब येदोनों देवदूत नहर के पुलिए पर बैठकर किसी दैत्य से कम नहीं लग रहे थे।
राजाबाबू का रंग और नहर के पानी का रंग एक जैसा था, उन्होंने एक गिलास पानी नहर से निकाला और दारू केसाथ मिक्स कर लिया। दोनों ने साथ में चियर्स किया, गिलास आपस में टकराने के बाद दोनों के होंठों तक पहुंचगए। करेजे में हलकी सी हूक उठी लेकिन तक तक सरकारी पानी से उनके अंतडि़यों की सिंचाई हो चुकी थी।

हजारी- पहले इ तो बताओ लव सीन अकेले खिसुआ थोड़ू न करेगा, केऊ लड़की भी तो चाहिए।
बुल्ला के दिमाग में सिरपत को नीचा दिखाने की आकांक्षा प्रबल हो चुकी थी और वे अब कुछ भी करके अपने अहमको संतुष्ट करना चाह रहे थे।
बुल्ला पुलिया से एकाएक उठ खड़े हुए बिलकुल हिंदुस्तानी छुटभैये नेताओं के अंदाज में और बोले- खिसुआ कीप्रेमिका का किरदार निभाएगी नगीना।
नाम सुनते ही हजारी हिल गए। नशा काफूर हो गया।
हजारी (रिएक्ट करते हुए)- चढ़ गई है तुमको, घर जाकर सीन लिखो।
इतने के साथ ही हजारी ने अपनी साइकिल उठाई और भाग निकले, भागने की प्रक्रिया के बीच ही हजारी ने कहा- नगीना क सोचिहा, मत मास्टर। सिरपतवा बुढौती खराब कई देई।
हजारी के जाने के बाद बुल्ला कुछ देर तक पुलिया पर बैठे रहे। नहर के पानी से जमकर मुंह धोने के बाद पैदल कुएंकी तरफ चल दिए जहां वे अपना झोला भूल गए थे। कुएं तक पहुंचते-पहुंचते बुल्ला ने ड्रामा का लव सीन सोचलिया था। उन्होंने यह भी तय कर लिया था कि नगीना को काम करने के लिए सिरपत से कैसे बात करना होगा।जगत पर पहुंचकर उन्होंने अपना टेरीकाट का कुर्ता निकाल दिया, पसीने से तरबतर बुल्ला झोले और कुर्ते कोसिरहाने दबाकर आकाश को ताकने लगे। तारों के बीच उन्हें बिमली की सूरत झिलमिलाती दिखी। बिमली खुशलग रही थी, उन्हें लगा कि वह उनसे बात करना चाह रही हो। बुल्ला बोले- का निहार रही हो।
बिमली- परशान हो, कपार दबा दें।
बुल्ला- परशान तो हम तबहूं हुए थे जब तुमसे पूरे गांव का खिलाफ जाकर बियाह किए थे।
बुल्ला खां-बिमली कुमारी का बियाह आसान तो न था ना। रामचंद्र ने हमको बचा लिया था, आज भी बचाते आए हैं।बुल्ला लगातार बोले जा रहे थे ऊपर की तरफ निहारते हुए)
बिमली- रामचंद तो आज भी तुम्हरे साथ हैं, तुम लिख सकते हो। प्रेम तो तुम हमसे भी किए थे।
बुल्ला मास्टर की आंखें मूंदने लगी थी और बिमली उनकी आंखों में पूरी तरह समा गई थी। भोरहरे नींद में ही बुल्लामास्टर पसीना-पसीना होने लगे। नींद उचट गई और उनके दिमाग में चल रहा सीन अब कागज पर उतरने कोव्याकुल हो उठा था।
उठते से ही उन्होंने अपना झोला टटोला, रजिस्टर और कलम लेकर लिखने बैठ गए। सुबह के सात बजे तक वेकरिया के गांव जाने के बाद की घटनाओं का विस्तार करते रहे ताकि खिसु और नगीना का प्रसंग उसमें जोड़ सके।
सूरज देवता मुंह पर चमक रहे थे। बुल्ला ने अपने जीवन का पहला लव ड्रामा पूरा कर लिया था, अब बस मंजूरी केलिए उन्हें सिरपत परधान के पास जाना था। गांव निपटान की प्रक्रिया में ही था कि इससे पहले बुल्ला सिरपतपरधान के घर पहुंच चुके थे।
सिरपत ने बुल्ला को आते देख बरछी से कहा- जो बे, एक ठो कुर्सी त लेई आउ।
(सिरपत की तरफ देखते हुए)- आवा मास्टर, (बरछी की तरफ देखते हुए चिल्लाकर) एक ठो चाई लाना मास्टर केलिए।
बुल्ला– नाहीं मास्टर, चाय-वाय बाद में। लव सीन लिख लिए हैं, बस एक बार सुन लें तो रिहर्सल शुरू कर दियाजाए। समय बहुत कम बचा है।
सिरपत- (हंसते हुए), अरे एतना जल्दी, हम तो आपसे मजाक किए थे। खैर अब सुना ही दीजिए।
बुल्ला ने रजिस्टर निकालकर पूरी कहानी फिर से एक बार सिरपत धोबी को सुना दी। साथ ही यह भी बता दिएखिसु की प्रेमिका वाले रोल के लिए कोई लड़की ही चाहिए।
सिरपत एक बार फिर से सिर खुजा रहे थे और साथ ही बुल्ला की तरफ ऑप्शन वाली निगाहों से देख रहे थे।
बुल्ला तपाक से बोले- एक बार ड्रामा हिट भया न, तो लड़़का और लड़की दूनू क फूचर ब्राइट बा परधान।
सिरपत ने दो-तीन मिनट के अंदर ही आंटी-भाभी टाइप्स के चार-पांच नाम गिना दिए। बुल्ला ने इन सभी नामोंको पहले से फिक्स की गई वजहों के आधार पर खारिज कर दिया। सिरपत एक बार फिर से गंभीर हो रहे थे आौरलगने लगा था कि कोई अशुभ घड़ी आ रही है।
हारकर सिरपत बोले- आप ही बताएं मास्टर, किसको लें।
बुल्ला मास्टर के पाले में गेंद पहली बार आई और उन्होंने तुरंत ही नगीना के नाम का सुझाव दे डाला।
पहले तो सिरपत चकरा गए लेकिन बाद में बुल्ला से इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा- देखा, परधान एक तोआपकी बेटी और दूसरे आपके सानिध्य में पूरा ड्रामा होगा। (बुल्ला लगातार सिरपत की आंखों में आंख डालकरबोले जा रहे थे)- ड्रामा हिट हुआ तो बिटिया आज ब्लॉक, कल जिला और परसों स्टेट लेवल पर पहचान बनाई।
बुल्ला की जुबानी जादू का सिरपत पर असर बढ़ रहा था और सिरपत की गंभीरता नगीना में राजनीतिक विरासतकी तलाश कर रही थी। अखबारों और टीवी चैनलों में उन्हें बदलते राजनीतिक दौर की बू तो पहले ही आ चुकी थी।
भरी दोपहर में अशोक गुप्ता और खिसु को बुलावा भेजा गया। रामलीला मंच पर ही ड्रामा करने की जगह मुकर्ररकर दी गई। मंच के पीछे दो कपड़ों के पर्दों को घेरकर रिहर्सल रूम बना दिया गया जहां मास्टर बुल्ला, खिसु औरनगीना के अलावा किसी को आने की मंजूरी नहीं थी। सिरपत परधान की बेटी का ड्रामा में रोल होने की वजह सेआस-पास के गांवों में खदेरूगंज के लव ड्रामा की जोरदार चर्चा और आलोचना हुई। गांव के लोग बीपीएल कार्ड , नरेगा, इन्दिरा आवास, जवाहर रोजगार, लाडली बेटी, कन्या धन और हरित तालाब जैसी योजनाओं का लाभ नपाने के डर से सिरपत के खिलाफ नहीं बोलते थे, गांव के बाहर के लोग बरछी और कलऊ के डर से। मास्टर बुल्लाकड़ी मेहनत करके खिसु और नगीना के प्रेम प्रसंग को जीवंत बनाने में लगे रहते।
सिरपत भी कभी-कभार दशा-दिशा देखने के लिए रिहर्सल रूम आ जाते थे।
अठारह का खिसु और पंद्रह की नगीना न चाहते थे और न ही प्रेमी-प्रेमिका बन पाते थे। फिर भी मास्टर बुल्लाहिम्मत ना हारते, दिन का खाना सिरपत के घर से वहीं मंगवा लेते थे। सिर खपा के वहीं पड़े रहते, चेहरे पर पिसीसुतही घिस-घिसकर नगीना और खिसु के चेहरे आसमानी चमकीले रंग के हो रहे थे।
रिहर्सल के पांचवें दिन दोपहर में डेढ़ और पौने दो बजे के बीचोंबीच पहली बार खिसु और नगीना की निगाहें मिलीथी। बुल्ला मास्टर अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे उंघ रहे थे। लम्बा सा, पीले फूलों की छाप वाला फ्रॉक पहने नगीनानीलम नामक अभिनेत्री लग रही थी और हॉफ आस्तीन की शर्ट-चिपकी पतलून पहने खिसु गोविंदा नामकअभिनेता। दोनों ने एक दूसरे को दूर से ही चुम्बन दिया, इतने में मास्टर बुल्ला उठ बैठे और रिहर्सल करने केआदेश दे दिए। एक घंटे में न जाने ऐसा क्या हुआ था कि बुल्ला मास्टर का लव सीन एकदम रियल सा हो चला था।एकबानगी कुछ ऐसी थी-
खिसु- तुम मेरे पास क्यों नहीं आती।
नगीना- छोड़ों, करिया चचा देख लेंगे। उनके ही पीठ पीछे हम ऐसा करेंगे।(नोट- खिसु ने कुछ ऐसा नहीं पकड़ा थाजो नगीना उसे छोड़ने के लिए कह रही थी)
खिसु- हमको भाग चलना चाहिए। ये गांव वाले हमारे प्यार को नहीं समझेंगे। मेरा कुछ सपना भी तो है, हम जीलेंगे जिंदगी।
नगीना- कैसे।
खिसु- तुम जिंदगी की बात करती हो, मैं सपनों की। तुम जिंदगी जी रही हो और मैं सपना देख रहा हूं। हमारीजिंदगी भी तो वहीं से शुरू हुई थी जहां से हमने सपना देखा था।
इतना सुनते ही बुल्ला मास्टर बोल पड़े थे- शाबाश। बच्चों। उस दिन के रिहर्सल का सीन यहीं से कट हो जाता है।
बुल्ला मास्टर कुएं पर बैठे हैं और हजारी पेग लगा रहे हैं। चांद उतरा आया है और चांदनी छिटकी हुई है।
कुछ पन्ने हाथ में पकड़े हुए वे बोलते हैं- बात साथ देने की नहीं थी, साथ निभाने की थी। मैं तो किसी का साथ ना देपाया। अपना भी बड़ी मुश्किल से दे पा रहा हूं।
इतना कहने के साथ ही मास्टर बुल्ला ने पहला पेग गटक लिया। हजारी ने भी पहला पेग गटकते हुए कहा- वाहमास्टर, छा गए। कउन से सीन का डाइलॉग हउ इ।
बुल्ला– खिसु और नगीना के जुदाई वाला सीन। मतलब यहीं से उनको बिछड़ना है।
आगे की कहानी ना हजारी ने पूछी और ना ही बुल्ला ने बताई।
हजारी और बुल्ला को राजाबाबू ने जैसे ही अपने आगोश में लिया वैसे ही आकाश में भी चांदनी डूबने लगी। मानोंकुछ बताना चाह रही हो, जल्दीबाजी का संकेत दे रही हो, क्या पता बेमौसम बरसात तो नहीं आने वाली थी।
सूरज सर पे आ गया था, बुल्ला को नींद में ही कोलाहल सुनाई दिया। आवाज सिरपत परधान के घर के तरफ से आरही थी। आंख खोली तो बरछी और कलऊ सामने खड़े थे। हजारी और बुल्ला पीछे-पीछे सिरपत परधान के घर तकपहुंचे। गांव की हिंदू बस्ती अलग उमड़ रही थी और मुस्लिम बस्ती अलग। छह सदस्यीय पंचायत में शब्बीर अली, पल्लू साईं, रेहान शेख के अलावा खुद सिरपत परधान, बड़कऊ दूबे और राम बचावन सिंह थे। मास्टर बुल्ला परआरोप लगाया गया कि इन्होंने खिसुआ आतिशबाज को पहले उकसाया और फिर नगीना को भी ड्रामा में कामकरने के लिए प्रेरित किया। साथ ही हिंदु-मुस्लिम भाईचारे से भी उन्होंने भड़काने की कोशिश की है। इसी कानतीजा है कि दोनों आज रात गांव छोड़ फरार हो गए। नगीना अपने साथ गहना-रूपया लेकर भागी है जबकिखिसुआ धनुष टूटने पर भड़ाम की आवाज निकालने वाले बम का नुस्खा लेकर फरार भया है। नया बम तो कोई भीबना सकता है लेकिन उस परंपरागत बम को बनाना आसान नहीं है। परधान सिरपत के साथ ही पूरी ग्राम पंचायतखदेरूगंज को इस फरारी प्रक्रिया से घोर नुकसान हुआ है। इस जघन्य कर्म की पूरी जिम्मेदारी मास्टर बुल्ला परआती है, अतएव यह पंचायत उन्हें पांच सालों के लिए गांव बदर करती है। इस दौरान कुर्क की गई उनकी संपत्तिग्राम पंचायत भवन में सुरक्षित रखी जाएगी।
सिरपत ने बुल्ला से पूछा- कुछ कहना चाहते हो अपनी सफाई मा मास्टर।
बुल्ला- मुजरिम सफाई नहीं देते परधान। आरोपी तो हमसे बिना कुछ पूछे ही बना दिया आप लोगों ने।
पंचायत खत्म हुई। बुल्ला के घर में एक बक्से, एक बिमली की फोटो और दो-पांच बर्तनों के अलावा कुछ भी नहींमिला। ‘कफन करिया का’ की पहली कहानी जो उन्होंने अशोक गुप्ता के लिए भिखारी के रोल को आधार बनाकरलिखी थी, उसकी पांडुलिपि भी ग्राम पंचायत खदेरूगंज ने जब्त कर ली थी।
बुल्ला अपना बिस्तर समेट उसी रात ग्राम पंचायत खदेरूगंज की सरहद से बाहर निकल पड़े। उनके साथ उनकीसाइकिल भी थी। उसी पुरानी पुलिया पर वे फिर से बैठ गए।
बुल्ला ने नीले आसमान की ओर देखा, बिमली मुस्करा रही थी।
बुल्ला ने चुटकी लेते हुए कहा- बात साथ देने की नहीं थी, बात साथ निभाने की थी।
हजारी बोले- सठिया गए हो मास्टर और चारों तरफ राजाबाबू की खुशबू फैल गई।
‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍‍ ‍‍‍ ‍ ‍‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍‍‍ ‍ ‍‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍‍‍‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍‍‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍‍ ‍‍ ‍‍‍‍‍ ‍‍‍ ‍ ‍‍‍ ‍ ‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍‍ ‍ ‍‍‍‍‍‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍‍ ‍ ‍‍ ‍‍ ‍‍‍‍‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍‍‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍ (‍‍ ‍‍‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍‍ ‍ ‍‍‍ ‍ ‍‍‍ ‍‍‍ ‍ ‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍‍‍‍‍‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍‍‍ ‍ ‍‍ ‍ ‍‍‍ ‍‍ ‍ ‍‍ ‍‍ ‍ ‍

14 comments:

Railway News Express said...

Language par pakad........ badi majboot hai ekdum bidla cement ki tarha.....!!! mein bhi yuva hoon pr kahanikaar bhi yuva or jis tarha ki kahani likhi gayi hein usame dehati language or thet type ke characters ka istemaal hua hai... yakeen ho gaya ki hindi mar nahi sakati..!!

irfan ahmad said...

खदेरूगंज का रूमांटिक ड्रामा is very interesting and realistic story. albeit it is drama but very connecting. and it seems author is just explaining real happening. some situations are very raw.like:"arhar ke khet me patak leta"

रवि रावत said...

Bhai Dugesh, pahle ki tarah hi ye kahani bhi achchi lagi. Shabdon ke khel me tumhara jawab nahin, ye mein pahle hi bol chuka hun. Kirdaron aur ghatnayon ka chayan bhi umda hai. Agar tumne Prem prasang ko thoda sa badhaya hota to maza aa jata. Ye aalochna nahin hai, meri gujarish samjhna. Shubhkamnayen. Ravi.

saurabh singh said...

very interesting story.........

शाकिर खान said...

बहुत लम्बी कहानी है दोस्त केसे पढूं टाइम कहाँ है इतना । आप छोटा छोटा लिखा करो । मेरा ब्लॉग: मिनिस्टर का लड़का फ़ैल हो गया । क्या वह उसे गोली मार देगा । पूरी कहानी पढ़ें और कमेन्ट भी करें

addictionofcinema said...

kamaal ki bhasha aur ab ye bhasha durgesh ki pehchan ban jani chahiye.bulla master ka charitra ankho ke samne hai...bahut badhai shandaar kahani ke liye...

shesnath pandey said...

हमें एक और आँचलिक कथाकार मिल गया...

shesnath pandey said...

हमें एक और आँचलिक कथाकार मिल गया...

Pratap said...

Durgesh ki kahaniyon ki bhasha aur vishay bahut hi sundar aur logo ke aas-paas ke hote hain... sabse zyaada jo mujhe mohit karti hai wo hain inki bhasha... Jiski wajah se ye bahut door tak ka safar tay kareinge...kahaani padhte waqt saare characters saamne dikhte hain... aur kahaani ek flow mein chalti hai...padhte-padhte pata hi nahi chalta ki kahaani kab khatm ho gayi... haan, kahaani ko thoda aur vistaar diya jaa sakta tha... jaise Bulle khan aur unki wife ki bat-cheet ko aur badhaya ja sakta tha.. wo portion mujhe bahut hi romantic aur marmik laga...play ka rehearsal aur achche se hona chahiye tha... usmein kafi sambhavnayein hain... Lekin kahaani ka ant dil ko chhuta hai... bahut khoob durgesh ji... Humein asha hai ki aage bhi aapse aisi hi kahaniyaan padhne ko milengi... durgesh ko badhaai achhi kahaani ke liye... aur bhaavi lekhan ke liye shubhkamnayein...

Rajesh Oza said...

दुर्गेश की कहानियों ने मेरे भीतर नई पीढ़ी के कथाकारों को पढ़ने की ललक, जोकि लगभग मृत्प्राय हो चुकी थी, फिर से पैदा की है। इनकी पहली कहानी (मेरे द्वारा पढ़ी गई) ‘जहाज’ को पढ़ने के बाद, मैं अवाक् रह गया था.
दरअसल, मुझे इनकी कहानियों की जो बात सबसे अच्छी लगती है और मुझे इनका अनन्य प्रशंसक बनाती है, वो है-इनका ताना-बाना, भाषा-शैली, सहज प्रवाह और आम आदमी से जुड़ने की तड़प। इनकी कहानियों का भाषाई भदेसपन इन्हें बहुत ही स्वाभाविक और प्रासंगिक बनाता है। दुर्गेश की इस दूसरी कहानी ‘खदेरूगंज का रूमांटिक ड्रामा’ में भी ये सारी खूबियां मौजूद हैं। और ये इस उदीयमान, संभावनाशील लेखक को अगले स्तर तक ले जाती है।

Brajesh Kumar Pandey said...

गजब की कहानी है ये.कथ्य और शिल्प आकर्षक है . सबकुछ एकदम आंचलिकता में .कहानी को जिस तरीके से कहा गया है वह महत्वपूर्ण है.आज के युवा कहानीकरों में जिनकी कहानियाँ गुदगुदाते हुए गंभीर बातें कह जाती है उनमे दुर्गेश का नाम भी जुड़ गया है.बहुत खांटी कहानी है ये कहानी की भाषा हो या समय सब प्रभावित करते है.इससे गुजरते हुए रेणु को पढने का सा धोखा हो आता है .अच्छी प्रस्तुति होती यदि टाइप सही होता .

Brajesh Kumar Pandey said...

गजब की कहानी है ये.कथ्य और शिल्प आकर्षक है . सबकुछ एकदम आंचलिकता में .कहानी को जिस तरीके से कहा गया है वह महत्वपूर्ण है.आज के युवा कहानीकरों में जिनकी कहानियाँ गुदगुदाते हुए गंभीर बातें कह जाती है उनमे दुर्गेश का नाम भी जुड़ गया है.बहुत खांटी कहानी है ये कहानी की भाषा हो या समय सब प्रभावित करते है.इससे गुजरते हुए रेणु को पढने का सा धोखा हो आता है .अच्छी प्रस्तुति होती यदि टाइप सही होता .

Anonymous said...

Nice story. THANX.

Mithilesh said...

ग्रामीण पृष्ठभूमि पर रची इस कहानी में उन्होंने उस खालिस देसीपन से परिचय कराने का सफल प्रयास किया है जो आमतौर पर किसी भी गांव में देखी जा सकती है। कहानी की रफ्तार आपको बांधे रखती है, पात्रों का वर्णन और उनके संवाद आपको गंवई अंदाज से जोड़े रखते हैं। दुर्गेश की लेखनी की खासियत है कि कहानी पढ़ते हुए पूरा ड्रामा आपके सामने घटित होता हुआ लगता है। शानदार रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं!!!