Tuesday, March 08, 2011

हिंदी कविता


रविकान्त

युवा कवि रविकान्त हिंदी के चर्चित कवियों में से हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से सम्मानित रविकान्त की कविताओं की अब तक एक किताब 'यात्रा' छाप चुकी है। पेशे से, एक राष्ट्रीय चैनल में वरिष्ठ संवाददाता हैं।

चाय
न जाने कहाँ से आती है पत्ती
हर बार अलग स्वाद की।
कैसा कैसा होता है मेरा पानी!

अन्दाज्ता हूँ चीनी
हाथ खींचकर, पहले थोड़ी
फिर और, लगभग न के बराबर
ज़रा सी!

कभी डालता हूँ गुड ही
चीनी की बजाय
बदलता हूँ जायका
अदरक, लौंग, तुलसी या इलायची से।

मुंह चमकाने के लिए महज़
दूध की
छोड़ता हूँ कोताही।

हर नींद के बाद
खौलता हूँ
अपनी ही आंच पर

हर थकावट के बाद
हर ऊब के बाद।

विद्योत्तामा

एक एक कर
तुम मेरी सब चीज़ें लौटाने लगी
मुझे लगा कि हमारा प्रेम टूट रहा है
जबकि, कभी नहीं किया था हमने प्रेम।

मैं करना चाहता था प्रेम, पूरी शिद्दत से
पर नहीं मिली तुम
तुम दिखी ही नहीं फिर कभी।

मैं दौड़ आना चाहता था तुम्हारी ओर
लिपट जाना चाहता था तुमसे।
अपने ताने बाने में
मैं ऐसा था ही,
तुम क्या
किसी को भी अधिक नहीं रुच सकता था मैं।

तुम न जाने अब, क्या सोचती होगी!
प्रिय और निरीह हूँगा मैं तुम्हारे निकट
शायद, मेरा हाल जान लेने को
उत्कट होती होगी तुम
मेरी ही तरह।

हालाँकि मैं कह नहीं सकता कि तुम गलत थीं...
मैंने जो खुट खुट शुरू की थी
मैं बहुत उलझ गया हूँ इसमें
मेरे रोयें भी बिना गए हैं इन्हीं धागों में
मैं बहुत ढल गया हूँ।

तुम्हारे बिना।

विकृति

गहरे हरे रंग की चाह में
खेतों की जगह
बनाता हूँ
घास के मैदान।

सौंदर्य को हर कहीं
नमूने की तरह देखता हुआ
किसी विकत सुन्दरता की आस में भटकता हूँ।

हर परदे में झाँक कर देखता हूँ
छुप कर डायरियों को पढता हूँ जरूर
किसी भव्य रहस्य की प्यास में
चीरता हूँ छिलके, मांस, गुठलियाँ और शून्य।

सीधे से कही गयी कोई बात
सीधी सी नहीं लगती
बहुत सारे सरल अर्थों को तोड़कर
खोजता हूँ, कोई गहरा अर्थ।

5 comments:

Anonymous said...

Nice Poems.

deepti sharma said...

सीधे से कही गयी कोई बात
सीधी सी नहीं लगती
बहुत सारे सरल अर्थों को तोड़कर
खोजता हूँ, कोई गहरा अर्थ।

bahut sunder

Anonymous said...

खराब कविताएँ, संग्रह की तरह ही।

moderator : bhashasetu said...

bahut achha mr./ms./mrs. anonymous. kripaya batane ka kasht karen ki kharab kavitaon ki kya kasauti hoti hai. aur hamen chahiye ki apne naam ke sath koi stand len.ye pardedaari ka kya raaz hai?haha
moderator : bhashasetu

Kumar Anupam said...

Yuva Kavita Sansar Mein Ravikant Ki Upasthiti Mahattvapurn Hai, Isliye Bhi Ki Unki Kavitaien Aanvesan Ka Rasta Chunti Hain.
Saral Arthon Ko Tod Kr Koi Gahra Arth Khojne Ki Hiqmat yaqeenan Aatmalochan Se hi Sambhav Hai, Jiski Jhalak Ravikant Ke Sabdon Mein Hai, Yh Km Nahi Hai.