Wednesday, March 23, 2011

महेश वर्मा की तीन कवितायेँ

रात

कभी मांसल, कभी धुआँती कभी डूबी हुई पसीने में
खूब पहचानती है रात अपनी देह के सभी रंग

कभी इसकी खडखडाती पसलियों में गिरती रहती पत्तियां
कभी टपकती ठंडी ओस इसके बालों से

यह खुद चुनती है रात अपनी देह के सभी रंग

यह रात है जो खुद सजाती है अपनी देह पर
लैम्प पोस्ट की रोशनी और चांदनी का उजास

ये तारे सब उसकी आँख से निकलते है
या नहीं निकलते जो रुके रहते बादलों की ओट

ये उसकी इच्छाएं हैं अलग अलग सुरों की हवाएं

तुम्हारी वासना उसका ही खिलवाड़ है तुम्हारे भीतर
ऐसे ही तुम्हारी कविता

यह एकांत उसकी सांस है
जिसमें डूबता आया है दिनों का शोर और पंछियों की उड़ान

तुम्हारा दिन उसी का सपना है.

कमीज़

खूंटी पर बेमन पर से टंगी हुई है कमीज़
वह शिकायत करते करते थक चुकी
यही कह रहीं उसकी झूलती बाहें

उसके कंधे घिस चुके हैं पुराना होने से अधिक अपमान से
स्याही का एक पुराना धब्बा बरबस खींच लेता ध्यान

उसे आदत सी हो गई है बगल के
कुर्ते से आते पसीने के बू की
उसे भी सफाई से अधिक आराम चाहिए
इस सहानुभूति के रिश्ते ने आगे आकर खत्म कर दी है उनकी दुश्मनी

लट्टू के प्रकाश के इस कोण से
उसकी लटक आयी जेब में भर आये अँधेरे की तो कोई बात ही नहीं .


छींक

छींक एक मजेदार घटना है अपने आंतरिक विन्यास में और बाहरी शिल्प में . अगर एक व्यक्ति के रूप में आप इसे देखना चाहें तो इसका यह गौरवशाली इतिहास ज़रूर जान जायेंगे कि इसे नहीं रोका जा सकता इतिहास के सबसे सनकी सम्राट के भी सामने। "नाखूनों के समान यह हमारे आदिम स्वभाव का अवशेष रह गया है हमारे भीतर" - यह कहकर गर्व से चारों ओर देखते आचार्य की नाक में शुरू हो सकती है इसकी सुरसुरी.

सभ्य आचरण की कितनी तहें फोडकर यह बाहर आया है भूगर्भ जल की तरह - यह है इसकी स्वतन्त्रता की इच्छा का उद्घोष। धूल जुकाम और एलर्जी तो बस बहाने हैं हमारे गढे हुए. रुमाल से और हाथ से हम जीवाणु नहीं रोकते अपने जंगली होने की शर्म छुपाते है.

कभी दबाते है इसकी दबंग आवाज़
कभी ढकना चाहते अपना आनंद.

10 comments:

shanti bhushan said...

इधर बीच महेश जी की कविताओं ने प्रभावित किया है... बहुत अच्छी कविताएँ....

शेषनाथ...

Vimlesh Tripathi said...

अच्छी कविताएं.. महेश भाई बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप...keep it up.. बहुत-बहुत बधाई...

siddheshwar singh said...

* इधर महेश वर्मा की कविताओं ध्यान खीचा है। उनमे ऐसी सहजता है जो विचार - पुष्ट है व भाषा के करघे पर कताई - बुनाई के सायास से अलग हैं।

** आपके प्रति आभार और महेश को बधाई!

pramod said...

सुन्‍दर कविताएँ हैं .

प्रदीप जिलवाने said...

तीनों उम्दा और प्यारी कविताएं विशेषकर रात. बधाई

स्वप्नदर्शी said...

अच्छी कविताएँ आभार

अरुण अवध said...

बड़ी अनूठी कवितायेँ हैं ! विचारों और अभिव्यक्ति के बीच
कलात्मक शब्द-सेतु ! बहुत बधाई !

मनोज पटेल said...

सभी कवितायेँ बहुत अच्छी हैं, मुझे 'छींक' खासतौर पर बहुत पसंद आई. इसके पहले सबद पर भी उनकी गद्य कवितायेँ पढ़ चुका हूँ. उनकी गद्य कवितायेँ अलग से पढ़े जाने की मांग करती हैं.

subway said...

awesome !

लीना मल्होत्रा said...

bahut prbhavshali lagi 'kameez'.bahut sundar. atyant samvedansheel. saabhaar. leena