इजिप्ट से एक कविता
गिर्गिस शौकरी
अंग्रेजी से अनुवाद : कुणाल सिंह
प्यार
खिड़की को देखकर बादल हंस पड़ा है
दोनों बिस्तरे पर निढाल हो पड़ते हैं
धीरे धीरे अपने कपड़े उतारते हैं
देखो
बिस्तरे की सिलवटों में वे टूट गिरे हैं
बिस्तर उनकी निझूम नींद को अगोर रहा है
बरजता है अलमारी में रह रहे कपड़ों को
कि आवाज़ मत करो
दीवारें पडोसिओं से चुगली कर
भीतर का भेद बताती हैं
और छतें नयोता देती हैं आकाश को
कि आओ घर के सब मिल जुल बैठें, बातें हों
दीवारों की देह से एक बहुत बड़ी हंसी छूटकर भाग रही है
जल्दी से पकड़ो
हमें उसे पकड़ लाना ही होगा
वरना पूरी दुनिया हँसते हँसते फट पड़ेगी।
2 comments:
NICE POEM.
Behtareen kvita aur uttam anuwad.
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