मनोज पटेल के सौजन्य से निजार कब्बानी की ये कवितायेँ। हम हिंदीपाठियों के लिए एक खुशखबरी बतौर मनोज ने कब्बानी की किताब 'On Entering The Sea' का अनुवाद पूरा कर लिया है, जो शीघ्र प्रकाश्य है।
साथ ही साथ पाठकों के लिए एक सूचना भी : अब से ‘भाषासेतु’ पर कोई भी पोस्ट सप्ताह में एक बार ‘बुधवार’ के दिन लगाई जाएगी। इस सिलसिले की पहली कड़ी (श्रीकांत द्वारा अनूदित) गार्सिया लोर्का की कविताएँ होंगी।
दुनिया की उत्पत्ति का एक नया सिद्धांत
एकदम शुरूआत में...... फातिमा थी सिर्फ
उसके बाद बने तत्व सभी
आग और मिट्टी
पानी और हवा
और फिर आए नाम और भाषाएँ
गरमी और बसंत ऋतु
सुबह और शाम
फातिमा की आँखों के बाद ही
खोजी गई दुनिया सारी,
राज काले गुलाब का
और फिर...... हजारों सदियों के बाद
आईं दूसरी औरतें.
* *
फातिमा
फातिमा खारिज करती है उन सभी किताबों को संदिग्ध है जिनकी सच्चाई
और शुरू करती है पहली पंक्ति से
वह फाड़ डालती है पुरुषों द्वारा लिखी सभी पांडुलिपियों को
और अपने स्त्रीत्व की वर्णमाला से करती है शुरू.
फेंक देती है वह अपने स्कूल की किताबों को
और पढती है मेरे होंठों की किताब में.
छोड़कर धूल भरे शहरों को
पानी के शहरों को चली आती है नंगे पाँव मेरे पीछे-पीछे.
प्राचीन रेलगाड़ियों से बाहर कूद
बोलती है मेरे साथ समुन्दर की जुबां
तोड़कर अपनी रेतघड़ी
ले चली जाती है मुझे समय से परे.
3 comments:
Behtareen kavitayen. Aabhar.
शब्दों के जरिये आपने हमारी आँखों के सामने ये सच्चाई रखने की कोशिश की है कि स्त्री के जरिये ही इस संपूर्ण जगत कि शुरुवात हुए थी. फातिमा के बारे में वो हर बात बहुत खुबसूरत लगती है.... मेरे पास शायद शब्द कम पड़ जायेंगे....
आप किसी भी वक़्फे से पोस्ट डालें, फ़ीड से पढ़ने वालों की लिए क्या फ़र्क़ पड़ता है?
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