Friday, December 31, 2010

कैरेक्टर्स आल्सो ब्रीद एंड फील

हम जब पढ़ रहे होते है तो अपने भौतिक जीवन के समानांतर दरअसल एक दूसरी दुनिया भी गढ़ रहे होते हैं। उस गढ़ी दुनिया में फूल, बारिशें, लोग चौराहे, दुख-दर्द सब होते हैं, और हकीकत की ही तरह जीवंत भी। मतलब ‘कैरेक्टर्स आल्सो ब्रीद एंड फील’। ‘भाषासेतु’ के इस नए स्तंभ में विश्व साहित्य के ऐसे यादगार किरदारों पर लिखे जाने की योजना है। जिसकी पहली किस्त में ‘लीविंग लीजेंड’ मार्केस के सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास ‘एकांत के सौ वर्ष’ की नायिका ‘उर्सुला’ पर लिख रहे हैं अनिल। 'अनिल' बिना लाग लपेट के सीधी बात करने वाली प्रजाति के तेज तर्रार युवा पत्रकार हैं, साहित्य से भी खासा लगाव रखते हैं। ‘नए साल की शुरुआत नई चीज़ के साथ’ करने की हमारी सोच को कार्यरूप देने में सहयोग के लिए अनिल का आभार। सभी पाठकों को ‘भाषासेतु’ की तरफ से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।


उर्सुला : रौशन ख़यालों की बेमिसाल जिंदगी


विश्व साहित्य में ऐसे कई पात्र हैं जिनकी नायाब विशेषताएं रचना को विलक्षण बनाती हैं. पात्रों की हाज़िर जबावी पाठकों को न सिर्फ़ विस्मित करती हैं, बल्कि विपत्तियों और निपट अकेलेपन में भी जीवन के प्रति उनकी लगन देखते बनती है. भारी मुश्किल क्षणों और प्रसंगों में आप उनकी सहजता, दृढ़ता और धैर्य से मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकते. पात्रों के जीवन मूल्य की ऐसी अनोखी विशेषताएं किसी रचना को यादगार बनाती हैं. इन पात्रों के ज़रिए समय और समाज के वितान को पाठक गहराई से महसूस करते हैं. ऐसे पात्र रचना को हमेशा, और कभी भी, पठनीय और प्रासंगिक बनाते हैं.

नोबल पुरस्कार से सम्मानित कोलंबिया के सर्वकालिक लेखक गैब्रियल गर्सिया मार्क्वेज़ (दोस्ताना नाम, गाबो) का उपन्यास ’एकांत के सौ वर्ष’ उनकी सर्वाधिक चर्चित रचनाओं में प्रमुख है. यह उपन्यास लैटिन अमरीका के मिथकीय आख्यानों और स्मृतियों का पुनर्लेखन है.

माकान्दों इतिहास की तारीखों में स्थापित कोई काल्पनिक नगर है जिसके संस्थापक खोसे अर्कादियो बुएनदिया साहस और खोजी मिज़ाज के धनी व्यक्तित्व हैं. उनकी चीज़ों और घटनाओं के बारे में ज्ञान हासिल करने की अलहदा ललक ने मकान्दों का एक अलग और अनन्य तेवर निर्मित किया है. मकान्दों नगर में बहुत कम समय में ही सुव्यवस्था क़ायम कर ली गई है. वहां नागरिकों के घर ऐसी जगह निर्मित किए गए जहां से सभी नदी तक पहुंच सकते हों और गलियों की क्रम व्यवस्था इस सूझ-बूझ से बनाई गई कि गर्मी के मौसम में किसी एक के घर में दूसरे से ज़्यादा धूप न आती हो. मकान्दों के संस्थापक खोसे अर्कादियो बुएनदिया के इस परिश्रमी (और कुछ मायनों में एक हद तक सनकी भी) मिज़ाज की साथी हैं, उनकी पत्नी उर्सुला इगुआरान जो ’एकांत के सौ वर्ष’में सबसे जुदा नज़र आती हैं. वह पति की अजीबोग़रीब हरकतों को सही, नियंत्रित दिशा देने के बेमिसाल काम करती हैं.

’उर्सुला की काम करने की क्षमता अपने पति जितनी ही थी. फुर्तीली, छरहरी और गंभीर, अटूट धैर्यवाली वह स्त्री, जो आजीवन एक पल भी चैन की सांस लेते नहीं देखी गई थी, अपने कामों से हर जगह मौजूद रहती. भोर से लेकर गई रात तक.’ अपने झालरदार लंहगे की हल्की सरसराहट लिए वह खोसे बुएनदिया की अजूबी हरकतों को भी परखती हैं.

खोसे अर्कादियो बुएनदिया अनजाने समुद्रों को पार करने, निर्जन प्रदेशों के दौरे करने और अपने उपकरणों के प्रयोग और संचालन में मसरुफ़ रहने वाले इंसान हैं. इन सक्रियताओं की वजह से कई बार वे पारिवारिक दायित्वों तक को भूल जाते हैं. उनके अभियानों के बारे में उर्सुला यह भलीभांति समझती है कि वे बंजारों के प्रभाव में आकर ऐसे कर रहे हैं. ये वे बंजारे थे जो कुछेक सालों के अंतराल पर मकान्दों आते और विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों को बजाते हुए आश्चर्यजनक खोजें दिखाने की मुनादी करते. खोसे अर्कादियो की इन बंजारों से महान उपलब्धियों वाली दोस्ती की शुरूआत होती है. और वे इनके प्रभाव में रोमांचक, असामान्य आविष्कारों की बाज़ीगरी के क़ायल हो जाते हैं और अपने घर में उनके प्रयोगों के परीक्षण दोहराने के लिए एकांत चुन लेते हैं.

उर्सुला परिवार और बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित है. कई दिनों की बेगानगी के बाद, अपनी खोजी यंत्रणाओं का बोझ उतारने के लिए बुएनदिया जब एक दिन बुख़ार की हालत में बच्चों के सामने अपनी खोजों का रहस्य खोलते हैं कि ’दुनिया संतरे की तरह गोल है.’ तो उर्सुला का एक और रूप देखने को मिलता है. वह धैर्य खो बैठी, ’अगर दिमाग़ ख़राब करना है तो अपना ही करो’ वह चिल्लाई, ’अपने बंजारे ख़यालात बच्चों के सिर में मत ठूंसों.’

उर्सुला को ख़ुद पर ग़ज़ब का यक़ीन है. शादी के समय उर्सुला की मां उसे अनर्थकारी भविष्यवाणियों से आतंकित कर देती है. उर्सुला अपने बलिष्ठ पति से आशंकित रहती है कि रात में कहीं वह उसका बलात्कार न कर ले. इसलिए वह विशेष तरह की मोटे कपड़े की बनी जांघियां पहन कर सोती है. जिसमें लोहे की पट्टियां लगी थीं और जिसे मोटे बकलस से कसा जा सकता था. विवाह के एक साल बाद तक उर्सुला जब कुमारी बनी रही तो लोक की सहज बुद्धि भांप लेती है कि दाल में कुछ काला है. नगर-वासी अफ़वाह उड़ाते हैं कि उर्सुला का पति नपुसंक है. खोसे शांतचित्त होकर जब उर्सुला से कहते हैं,
’देख रही हो न उर्सुला, लोग क्या बकते फिर रहे हैं’, ’बकने दो’, वह बोली, ’हम तो जानते हैं न कि सच क्या है.’

उर्सुला का नगर की महिलाओं के बीच में भी काफ़ी प्रभाव है. वह मर्दों के आसमानी ख़यालों को तुरंत भांप जाती है. होता यूं है कि खोसे अर्कादियों अपनी ख़ब्ती ईजादों में उलझे रहते हैं. समुद्री जल से घिरे होने के कारण मकान्दों के संस्थापक को एक बार भ्रम हो जाता है कि उनका नगर सब तरफ़ पानी से घिर गया है तो वे ख़ुद को दंडित महसूस करते हुए कहते हैं कि ’हम विज्ञान के लाभों का भोग किए बिना ज़िंदगी भर यहीं सड़ते रहेंगे.’

वे मकान्दो को स्थानांतरित करने की कल्पना करने लगते हैं. लेकिन ’उर्सुला उनके बेचैन मंसूबों का अंदाज़ा लगा लेती है और इसके पहले कि वे स्थानांतरण की तैयारियां शुरू कर पाते, चींटी के-से गुप्त और कठोर श्रम द्वारा उसने नगर की औरतों को अपने मर्दों की अस्थिरवृत्तिता के प्रति सचेत कर देती है. खोसे बुएनदिया को भनक तक नहीं लग पाती कि कौन सी घड़ी और किन बलाओं के चलते उनकी योजनाएं, बहानों और टालमटोल के जाल में फंसती चली गईं जब तक कि वे निरा भ्रम न साबित हो गईं.

उर्सुला संकल्प और विनम्र दृढ़ता की मिसाल है. वह ख़तरे उठाने में कई बार वह खोसे अर्कादियो से आगे जाती है. एक बार जब उसका बेटा औरलियानों खोसे अर्कादियो के दुश्मन की बेटी से प्रेम के लिए घर से भाग जाता है तो उर्सुला उसे खोज निकालने और मदद करने के लिए बिना किसी को बताए समुद्री अवरोधों को पार करने का निर्णय लेती है. ‘बूएनदिया’, ज़ाहिर सी बात है, प्रेम का खुले दिल से समर्थन नही करते लेकिन उर्सुला के संकल्प से वे अच्छी तरह परिचित है, वे अपनी जिद पर झूलते नहीं. उत्तरदायित्व और शालीनता में उर्सुला का कोई सानी नहीं. उर्सुला का अपने स्वभाव पर गंभीर नियंत्रण है. इसीलिए वह ’बुएनदिया के अतिवादी परिवार में अपनी व्यवहारिक बुद्धि बनाए रखने के लिए जूझती है और इसमें सफल होती है.’

उर्सुला की विशेषताएं खोसे अर्कादियो बुएनदिया के व्यवहार के आलोक में और स्पष्ट होती हैं. काल्पनिक नगर मकान्दों के ये संस्थापक दंपति लैटिन अमेरिकी धरती की एक जादुई सैर कराते हैं.



*किताब का नाम : एकांत के सौ वर्ष***

*लेखक : गैब्रियल गर्सिया मार्क्वेज़***

*मूल स्पेनिश से अनुवाद : सोन्या सुरभि गुप्ता***

*प्रकाशन: राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली***

3 comments:

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प है ......

नया सवेरा said...

... sundar prastuti !!

Anonymous said...

nakafi...