Sunday, April 18, 2010

तालिबान का देसी संस्करण

पिछले दिनों जब मनोज और बबली की हत्या करने वालों को करनाल सत्र न्यायालय ने सजा सुनाई तो ऐसा लगा कि सभ्यता की बर्बरता को सिरे से ख़त्म करने की दिशा में यह पहला क़दम है। विदित हो कि हरयाणा की खाप पंचायत ने वर्ष २००७ में मनोज और बबली की इसलिए हत्या कर दी थी कि उन्होंने खाप के कानून का उल्लंघन कर सगोतिया होने के बावजूद शादी कर ली थी। सिर्फ मनोज और बबली ही क्यों, पिछले कुछ वर्षों में न जाने कितने मनोजों और बबलियों को इसलिए मार दिया गया कि एक ही गोत्र के होने के बाद भी उन्होंने प्रेम विवाह कर लिया था। ऐसे में अगर पहली बार खाप पंचायतों की संप्रभुता को भारतीय संविधान चैलेन्ज करता है तो निश्चित रूप से यह ख़ुशी की बात होनी चाहिए।

लेकिन पिछले दिनों चार राज्यों- हरयाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों ने एक महासभा की और मनोज व बबली की हत्या के आरोप में दण्डित सात अभियुक्तों को बचाने की जंग छेड़ने का ऐलान किया। पांच हज़ार से ज्यादा लोगों ने इस महासभा में यह निर्णय लिया कि वे मनोज-बबली के हत्यारों को बचाने के लिए हाई कोर्ट से लगा कर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे। तय हुआ कि हर घर से दस दस रुपये चंदा लेकर यह 'धर्मयुद्ध' लड़ा जाएगा। विदित हो कि इस महासभा में भारतीय किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह टिकैत और हरयाणा के एक पूर्व डीजीपी महेंद्र सिंह मलिक भी शिरक़त करने पंहुचे थे।

आश्चर्य होता है कि ये खाप के सदस्य आखिर किस दुनिया में जीते हैं! क्या अफगानिस्तान-पाकिस्तान के तालिबानों और खाप के सदस्यों में कोई असमानता है? अगर नहीं है तो फिर सर्कार उनके साथ वही सलूक क्यों नहीं करती जो उसने दंतेवाडा में कथित माओवादियों के साथ किया? पी चिदंबरम ने अभी हाल में पश्चिम बंगाल का दौरा करने के बाद कहा था कि यहाँ की कानून व्यवस्था ठीक नहीं है। तो क्या सिर्फ इसलिए कि वहां वामपंथी सरकार है और हरयाणा में नहीं? याद करें पाकिस्तान की रीढ़हीन सरकार ने भी तालिबानों को पहले उतनी गंभीरता से नहीं लिया था और नतीजा वे आज तक भुगत रहे हैं। तो क्या यह खाप महासभा हमें एक चेतावनी नहीं देता?

कुणाल सिंह

2 comments:

Anonymous said...

bahut hi achha mudda uthaya hai kunal ji apne

SK
kolkata

NC said...

TOPIC TO ACHA HAI LEKIN KAFI PURANA HO GAYA HAI. KUCH AUR NAYA DIJIYE.