Wednesday, April 14, 2010

बांग्ला कविता


१९५४ में जन्मे जय गोस्वामी के अबतक लगभग २५ कविता संग्रह बांग्ला में प्रकाशित हो चुके हैं। आनंद पुरस्कार समेत कई महत्वपूर्ण पुरस्कार पा चुके हैं। फिलहाल बांग्ला अखबार 'प्रतिदिन' से जुड़े हुए हैं।
1४ मार्च २००७ को नंदीग्राम का भयावह ऐतिहासिक हादसे के बाद जय गोस्वामी ने 'शासक के प्रति' नाम से यह कविता लिखी- सुशील कान्ति


शासक के प्रति

आप जो कहेंगे मैं बिलकुल वही करूँगा
वही खाऊंगा -पियूँगा, वही पहनूंगा ,
मल के वही देह में निकलूंगा बहार
ज़मीन अपनी छोड़
चला जाऊंगा बिना एक भी शब्द कहे
कहेंगे- गले में रस्सी बांध लटके रहो रात भर
वैसा ही करूँगा
सिर्फ अगले दिन जब कहेंगे-
अब उतर आओ
तब लेकिन किसी और की ज़रूरत पड़ेगी
अपने से उतर नहीं पाउँगा
इतना भर
जो न कर सका
उसे न मानें आप
मेरी बेअदबी।


जय गोस्वामी
मोब 0993710969

रूपांतर
संजय भारती
मोब 09330887131

4 comments:

विनीत कुमार said...

अद्भुत..

Rangnath Singh said...

छोटी,सीधी,सरल और प्रभावी कविता।

NC said...

NICE POEM.

सत्यनारायण पटेल, कहानीकार, उपन्यासकार, इन्दौर said...

जय गोस्वामी जी 'शासक के प्रति'बहुत उम्दा है, और इसके शब्द-शब्द से शासक के प्रति विद्रोह के भाव प्रकट होते हैं। जो समाजवाद लाने का सपना दिखा रहे थे वे ही आज समाज की लाशों पर से ग़ुजरते हुए गौरव महसूस कर रहे हैं। उनके ऎसे कृत्य से देश में एक बड़े हिस्से का मोह भंग हुआ है।
सत्यनारायण पटेल
बिजूका लोक मंच, इन्दौर
bizooka2009.blogspot.com